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आचारांग सूत्र - द्वितीय श्रुतस्कन्ध
(२) पूर्व-पश्चात् - परिचित गृहस्थों के यहाँ भिक्षाकाल से पूर्व न जाए, (३) कदाचित् अनजाने में चला भी जाए, तो 'उन घरों से बचकर अन्य घरों में भिक्षा करे, (४) भिक्षाकाल में भिक्षाटन करते देख परिचित गृहस्थ को आधाकर्मिक दोषयुक्त आहार बनाते जान कर उसे वैसा करने से इन्कार कर दे, (५) फिर भी बनाकर देने लगे तो उस आहार को न ले ।
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आधाकर्म के साथ-साथ उद्गम के अन्य दोष भी अपने खास परिचित घरों से लेने में लगने की सम्भावना हो । १
ग्रासैषणा दोष परिहार
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३९३. से भिक्खू वा २ जाव २ समाणे से ज्जं पुण जाणेज्जा, मंसं वा मच्छं वा भजिजमाणं पेहाए तेल्लपूयं वा आएसाए उवक्खडिज्जमाणं पेहाए णो खद्धं खद्धं उवसंकमित्तु ओभासेज्जा णण्णत्थ गिलाणाए ।'
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३९४. से भिक्खू वा २ जाव समाणे अण्णतरं भोयणजातं पडिगाहेत्ता सुबिंभ सुब्भि भोच्या दुब्भि दुब्धि परिट्ठवेति । मातिट्ठाणं संफासे । णो एवं करेजा ।
सुब्वा दुब्विा सव्वं भुंजे ण छड्डए ।
३९५. से भिक्खू वा २ जाव समाणे अण्णतरं वा पाणगजायं पडिगाहेत्ता पुष्कं पुष्कं आविइत्ता कसायं कसायं परिट्ठवेति । माइट्ठाणं संफासे । णो एवं करेज्जा । पुष्कं पुप्फे तिवा कसा कसा ति वा सव्वमेणं भुंजेज्जा, ण किंचि वि परिट्ठवेज्जा ।
३९६. से भिक्खू वा २ बहुपरियावण्णं भोयणजायं पडिगाहेत्ता साहम्मिया तत्थ वसंत संभोइया समण्णा अपरिहारिया अदूरगया । तेसिं अणालोइया अणामंतिया ६ परिट्ठवेति । मातिट्ठाणं संफासे | णो एवं करेज्जा ।
१.
आचारांग वृत्ति पत्रांक ३५१ के आधार पर।
२. यहाँ जाव शब्द से गाहावइकुलं से लेकर समाणे तक का पाठ सूत्र ३२४ के अनुसार समझें ।
३.
'मंसं वा तेल्लपूयं वा' तक चूर्णिकार मान्य पाठान्तर इस प्रकार है- मंसं वा मच्छं वा भज्जिज़माणं हा सक्कुलिं वा पूवं वा तेल्लापूतं वा । अर्थात् मांस और मत्स्य को भूँजे जाते हुए देखकर, पूड़ीआ या तेल का पूआ कड़ाही में बनाते देखकर ।
४.
rorत्थ गिलाणाए के स्थान पर णण्णत्थ गिलाणीए, पाठान्तर मिलते हैं। चूर्णिकार ने तीसरा पाठान्तर माना है जिसका 'सुब्भि से लेकर छड्डए तक का पाठान्तर इस प्रकार है 'सुब्भि ति वा दुब्भि ति वा सव्वमेयं' भुंजिज्जा, नो किंचि वि परिट्ठविज्जा' सुगन्धित हो या दुर्गन्धित, उस सब आहार का - उपभोग कर ले, किंचित भी न परठे न डाले ।
६. अणामंतिया के स्थान पर अणासंसिया पाठ किसी-किसी प्रति में मिलता है। उसका अर्थ है. अपेक्षा किये बिना ।
५.
गिलाणीए, णण्णत्थ गिलाणो आदि
- ग्लान (रोगी) के सिवाय ।
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अर्थ है.
- दूसरों की