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________________ OO - O 00 O लोकविजय-द्वितीय अध्ययन १. २. प्राथमिक इस अध्ययन का प्रसिद्ध नाम लोग-विजय है। कुछ विद्वानों का मत है कि इसका प्राचीन नाम 'लोक-विचय' होना चाहिए । १ प्राकृत भाषा में 'च' के स्थान पर 'ज' हो जाता है। किन्तु टीकाकार ने 'विजय' को 'विचय' न मानकर 'विजय' संज्ञा ही दी है। विचय - धर्मध्यान का एक भेद व प्रकार है। इसका अर्थ है - चिन्तन, अन्वेषण, तथा पर्यालोचन । विजय का अर्थ है - पराक्रम, पुरुषार्थ तथा आत्म-नियन्त्रण । प्रस्तुत अध्ययन की सामग्री को देखते हुए 'विचय' नाम भी उपयुक्त लगता है। क्योंकि इसमें लोक-संचार का स्वरूप, शरीर का भंगुर धर्म, ज्ञातिजनों की अशरणता, विषयोंपदार्थों की अनित्यता आदि का विचार करते हुए साधक को आसक्ति का बन्धन तोड़ने की हृदयस्पर्शी प्रेरणा दी गई है। आज्ञा-विचय, अपाय- विचय आदि धर्मध्यान के भेदों में भी इसी प्रकार के चिन्तन की मुख्यता रहती है। अतः 'विचय' नाम की सार्थकता सिद्ध होती है। साथ ही संयम में पुरुषार्थ, अप्रमाद तथा साधना में आगे बढ़ने की प्रेरणा, कषाय आदि अन्तरंग शत्रुओं को 'विजय' करने का उद्घोष भी इस अध्ययन पद-पद पर मुखरित है। O 'विचय' ध्यान व निर्वेद का प्रतीक है। 'विजय' 1- पराक्रम और पुरुषार्थ का बोधक है। प्रस्तुत अध्ययन में दोनों ही विषय समाविष्ट हैं। फिर भी हमने परम्परागत व टीकाकार द्वारा स्वीकृत 'विजय' नाम ही स्वीकार किया है। २ पुष्कर मुनि अभिनन्दन ग्रन्थ पृष्ठ ५९६ डा. बी. भट्ट का लेख - 'दि लोगविजय निक्षेप एण्ड लोकविचय' आचा० शीला०, पत्रांक ७५
SR No.003436
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages430
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Conduct, & agam_acharang
File Size9 MB
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