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प्रथम अध्ययन
पञ्चमो उद्देसओ
पंचम उद्देशक
अणगार का लक्षण
४०. तं णो करिस्सामि समुट्ठाए मत्ता मतिमं अभयं विदित्ता तं जे णो करए एसोवरते, एत्थोवरए, एस अणगारे त्ति पवुच्चति ।
४०. (अहिंसा में आस्था रखने वाला यह संकल्प करे) - मैं संयम अंगीकार करके वह हिंसा नहीं करूंगा। बुद्धिमान संयम में स्थिर होकर मनन करे और 'प्रत्येक जीव अभय चाहता है' यह जानकर (हिंसा न करे) जो हिंसानहीं करता, वही व्रती है। इस अर्हत्-शासन में जो व्रती है, वही अनगार कहलाता है।
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विवेचन - इस सूत्र में अहिंसा को जीवन में साकार करने के दो साधन बताये हैं। जैसे मनन; - बुद्धिमान पुरुष जीवों के स्वरूप आदि के विषय में गम्भीरतापूर्वक चिन्तन-मनन करे। अभय जाने - फिर यह जाने कि जैसे. मुझे 'अभय' प्रिय है, मैं कहीं से भय नहीं चाहता, वैसे ही कोई भी जीव भय नहीं चाहता। सबको अभय प्रिय है । इस बात पर मनन करने से प्रत्येक जीव के साथ आत्म- एकत्व की अनुभूति होती है। इससे अहिंसा की आस्था सुदृढ़ एवं सुस्थिर हो जाती है ।
टीकाकार ने 'अभय' का अर्थ संयम भी किया है। तदनुसार 'अभयं विदित्ता' का अर्थ है - संयम को जान
कर । १
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४१. जे गुणे से आवट्टे, जे आवट्टे से गुणे ।
उड्ढं अहं तिरियं पाईणं पासमाणे रूवाई पासति, सुणमाणे सद्दाई सुणेति । उड्ढं अहं तिरियं पाईणं मुच्छमाणे रूवेसु मुच्छति, सद्देसु यावि ।
एस लोगे वियाहिते ।
एत्थ अगुत्ते अणाणा पुणो पुणो गुणासाए वंकसमायारे पमत्ते गारमावसे ।
४१. जो गुण (शब्दादि विषय) हैं, वह आवर्त संसार है। जो आवर्त है वह गुण हैं ।
ऊँचे, नीचे, तिरछे, सामने देखनेवाला रूपों को देखता है। सुनने वाला शब्दों को सुनता है ।
ऊँचे, नीचे, तिरछे, सामवे - विद्यमान वस्तुओं में आसक्ति करने वाला, रूपों में मूच्छित होता है, शब्दों में मूर्च्छित होता है।
यह (आसक्ति) ही संसार कहा जाता है ।
जो पुरुष यहाँ (विषयों में) अगुप्त है । इन्द्रिय एवं मन से असंयत है, वह आज्ञा धर्म-शासन के बाहर है। जो बार-बार विषयों का आस्वाद करता है, उनका भोग-उपभोग करता है, वह वक्रसमाचार - अर्थात्
अविद्यमानं भयमस्मिन् सत्त्वानामित्यभयः - संयमः । - आचा० टीका पत्रांक ५६ । १
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