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________________ प्रथम अध्ययन : तृतीय उद्देशक : सूत्र १९ १६. जो यहाँ (लोक में) पृथ्वीकायिक जीवों पर शस्त्र का समारंभ - प्रयोग करता है, वह वास्तव में इन आरंभों (हिंसा सम्बन्धी प्रवृत्तियों के कटु परिणामों व जीवों की वेदना) से अनजान है। ___जो पृथ्वीकायिक जीवों पर शस्त्र का समारंभ/प्रयोग नहीं करता, वह वास्तव में इस आरंभों/हिंसा-सम्बन्धी प्रवृत्तियों का ज्ञाता है, (वही इनसे मुक्त होता है)। १७. यह (पृथ्वीकायिक जीवों की अव्यक्त वेदना) जानकर बुद्धिमान मनुष्य न स्वयं पृथ्वीकाय का समारंभ करे, न दूसरों से पृथ्वीकाय का समारंभ करवाए और न उसका समारंभ करने वाले का अनमोदन करे। जिसने पृथ्वीकाय सम्बन्धी समारंभ को जान लिया अर्थात् हिंसा के कटु परिणाम को जान लिया वही परिज्ञातकर्मा (हिंसा का त्यागी) मुनि होता है। - ऐसा मैं कहता हूँ। ॥ द्वितीय उद्देशक समाप्त ॥ तइओ उद्देसओ तृतीय उद्देशक अनगार लक्षण १९. से बेमि - से जहा वि अणगारे उज्जुकडे णियागपडिवण्णे अमायं कुव्वमाणे वियाहिते। १९. मैं कहता हूँ - जिस आचरण से अनगार होता है। जो, ऋजुकृत् - सरल आचरण वाला हो, नियाग-प्रतिपन्न - मोक्ष मार्ग के प्रति एकनिष्ठ होकर चलता हो, अमाय - कपट रहित हो। विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में 'अनगार' के लक्षण बताये हैं। अपने आप को 'अनगार' कहने मात्र से कोई अनगार नहीं हो जाता। जिसमें निम्न तीन लक्षण पाये जाते हों, वहीं वास्तविक अनगार होता है। (१) ऋजु अर्थात् सरल हो, जिसका मन एवं वाणी कपट रहित हो, तथा जिसकी कथनी-करनी में एकरूपता हो वह ऋजुकृत् है। उत्तराध्ययन सूत्र में बताया है - सोही उजुभूयस्य धम्मो सुद्धस्स चिट्ठइ - ३१२ - ऋजु आत्मा की शुद्धि होती है। शुद्ध हृदय में धर्म ठहरता है। इसलिए ऋजुता धर्म का - साधुता का मुख्य १. चूर्णि में-'निकायपडिवण्णे' पाठ है।
SR No.003436
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages430
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Conduct, & agam_acharang
File Size9 MB
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