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प्रथम अध्ययन : द्वितीय उद्देशक : सूत्र १५ पृथ्वीकायिक जीवों का वेदना-बोध
१५- से बेमि - अप्पेगे अंधमब्भे, अप्पेगे अंधमच्छे, अप्पेगे पादमब्भे, अप्पेगे पादमच्छे, अप्पेगे गुप्फमब्भे, अप्पेगे गुप्फमच्छे, अप्पेगे जंघमब्भे, अप्पेगे जंघमच्छे, अप्पेगे जाणुमब्भे, अप्पेगे जाणुमच्छे, अप्पेगे ऊरुमब्भे, अप्पेगे ऊरुमच्छे, अप्पेगे कडिमब्भे, अप्पेगे कडिमच्छे, अप्पेगे णाभिमब्भे, अप्पेगे णाभिमच्छे, अप्पेगे उदरमब्भे, अप्पेगे उदरमच्छे, अप्पेगे पासमब्भे, अप्पेगे पासमच्छे, अप्पेगे पिट्ठिमब्भे, अप्पेगे पिट्ठिमच्छे, अप्पेगे उरमब्भे, अप्पेगे उरमच्छे, अप्पेगे हिययमब्भे, अप्पेगे हिययमच्छे, अप्पेगे थणमब्भे, अप्पेगे थणमच्छे, अप्पेगे खंधमब्भे, अप्पेगे खंधमच्छे, अप्पेगे बाहुमब्भे, अप्पेगे बाहुमच्छे, अप्पेगे हत्थमब्भे, अप्पेगे हत्थममच्छे, अप्पेगे अंगुलिमब्भे, अप्पेगे अंगुलिमच्छे, अप्पेगे णहमब्भे, अप्पेगे णहमच्छे, अप्पेगे गीवमब्भे, अप्पेगे गीवमच्छे, अप्पेगे हणुयमब्भे, . अप्पेगे हणुयमच्छे, अप्पेगे हो?मब्भे, अप्पेगे हो?मच्छे, अप्पेगे दंतमब्भे, अप्पेगे दंतमच्छे, अप्पेगे जिब्भमब्भे, अप्पेगे जिब्भमच्छे, अप्पेगे तालुमब्भे, अप्पेगे तालुमच्छे, अप्पेगे गलमब्भे, अप्पेगे गलमच्छे, अप्पेगे गंडमब्भे, . अप्पेगे गंडमच्छे, अप्पेगे कण्णमब्भे, अप्पेगे कण्णमच्छे, अप्पेगे णासमब्भे, अप्पेगे णासमच्छे, अप्पेगे अच्छिमब्भे, अप्पेगे अच्छिमच्छे, अप्पेगे भमुहमब्भे, अप्पेगे भमुहमच्छे, अप्पेगे णिडालमब्भे, अप्पेगे णिडालमच्छे, अप्पेगे सीसमब्भे, अप्पेगे सीसमच्छे । अप्पेगे संपमारए, अप्पेगे उद्दवए । १५. मैं कहता हूँ -
(जैसे कोई किसी जन्मान्ध ' व्यक्ति को (मूसल-भाला आदि से) भेदे, चोट करे या तलवार आदि से छेदन करे, उसे जैसी पीड़ा की अनुभूति होती है, वैसी ही पीड़ा पृथ्वीकायिक जीवों को होती है।)
जैसे कोई किसी के पैर में, टखने पर, घुटने, उरु, कटि, नाभि, उदर, पार्श्व - पसली पर, पीठ, छाती, हृदय, स्तन, कंधे, भुजा, हाथ, अंगुली, नख, ग्रीवा (गर्दन), ठुड्डी, होठ, दाँत, जीभ, तालु, गले, कपोल, कान, नाक, आँख, भौंह, ललाट, और शिर का (शस्त्र से) भेदन छेदन करे, (तब उसे जैसी पीड़ा. होती है, वैसी ही पीड़ा पृथ्वीकायिक जीवों को होती है।)
जैसे कोई किसी को गहरी चोट मारकर, मूच्छित कर दे, या प्राण-वियोजन ही कर दे, उसे जैसी कष्टानुभूति होती है, वैसी ही पृथ्वीकायिक जीवों की वेदना समझना चाहिए। १. यहाँ अन्ध' शब्द का अर्थ जन्म से इन्द्रिय-विकल - बहरा, गूंगा, पंगु. तथा अवयवहीन समझना चाहिए।
- आचा० शीलाक टीका ३५१