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________________ २९० आचारांग सूत्र/प्रथम श्रुतस्कन्ध (१) अन्य तीर्थंकरों के द्वारा आचरित के अनुसार आचरण किया। (२) दूसरे तीर्थंकरों के मार्ग का अतिक्रमण न किया। अतः यह अन्यानतिक्रान्त विधि है।' 'अपडिण्णेण भगवया' - भगवान् किसी विधि-विधान में पूर्वाग्रह से, निदान से या हठाग्रह पूर्वक बंध कर नहीं चलते थे। वे सापेक्ष-अनेकान्तवादी थे। यह उनके जीवन से हम देख सकते हैं। २ ____॥प्रथम उद्देशक समाप्त ॥ बिइओ उद्देसओ द्वितीय उद्देशक शय्या-आसन चर्या २७७. चरियासणाई सेज्जाओ एगतियाओ जाओ बुइताओ । __ आइक्ख ताई सयणासणाई जाइं सेवित्थ से महावीरे ॥६४॥ . २७८. आवेसण-सभा-पवासु पणियसालासु एगदा वासो । ___अदुवा पलियट्ठाणेसु पलालपुंजेसु एगदा वासो ॥६५॥ २७९. आगंतारे ५ आरामागारे नगरे वि एगदा वासो । सुसाणे सुण्णगारे वा रुक्खमूले वि एगदा वासो ॥६६॥ २८०. एतेहिं मुणी सयणेहिं समणे आसि पतेरस' वासे । राइंदिवं पि जयमाणे अप्पमत्ते समाहिते झाती ॥ ६७॥ (क) आचा०शीला० टीका पत्रांक ३०५ (ख) चूर्णि मूल पाठ सू० २७६ का टिप्पण देखें आचा० शीला० टीका पत्र ३०६ के आधार पर चूर्णिकार ने दूसरे उद्देशक की प्रथम गाथा के साथ संगति बिठाते हुए कहा - चरियाणंतरं सेजा, तद्विभागो अवदिस्सतिचरितासणाई सिज्जाओ एगतियाओ जाओ वुतिताओ। आइक्ख तातिं सयणासणाई जाई सेवित्थ से महावीरे। एसा पुच्छा। चर्या के अनन्तर शय्या (वासस्थान) है, उसके विभाग का व्यपदेश करते हैं - "आपने एक दिन भगवान् की चर्या आसन और शय्या के विषय में कहा था, अतः उन शयनों (वासस्थानों) और आसनों के विषय में बताइए, जिनका भगवान् महावीर ने सेवन किया था।" यह सुधर्मास्वामी से जम्बूस्वामी का प्रश्न है। 'पणियसालासु' के बदले 'पणियगिहेसु' पाठ है। अर्थ समान है। इसके बदले चूर्णिसम्मत पाठान्तर है - 'आरामागारे गामे रण्णे विएगता वासो।' अर्थात् आरामगृह में, गाँव में या वन में भी कभी-कभी निवास करते थे। 'पतरसवासे' के बदले पाठान्तर 'पतेलसवासे' भी है। चूर्णिकार ने अर्थ किया है - "पगतं पत्थियं वा तेरसमं वरिसं, जेसिं वरिसाणं ताणिमाणि-पतेरसवरिसाणि।" - तेरहवां वर्ष प्रगत चल रहा था, प्रस्थित था - प्रस्थान कर चुका था। प्रत्रयोदश वर्ष से सम्बन्धित को 'प्रत्रदोदशवर्षः' कहते हैं।
SR No.003436
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages430
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Conduct, & agam_acharang
File Size9 MB
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