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आचारांग सूत्र/प्रथम श्रुतस्कन्ध
अहिंसा-विवेकयुक्त चर्या २६५. पुढविं च आयकायं च तेउकायं च वायुकायं च ।
पणगाई बीयहरियाई तसकायं च सव्वसो णच्चा ॥५२॥ २६६. एताई संति पडिलेहे चित्तमंताई से अभिण्णाय ।
परिवज्जियाण विहरित्था इति संखाए से महावीरे ॥ ५३॥ २६७. अदु थावरा तसत्ताए तसजीवा य थावरत्ताए ।
अदुवा ' सव्वजोणिया सत्ता कम्मुणा कप्पिया पुढो बाला ॥५४॥ २६८. भगवं च एवमण्णेसि सोवधिए हु लुप्पती बाले ।
कम्मं च सव्वसो णच्चा तं पडियाइक्खे पावगं भगवं ॥५५॥ २६९. दुविहं समेच्च मेहावी किरियमक्खायमणेलिसिं णाणी।।
आयाणसोतमतिवातसोतं जोगं च सव्वसो णच्चा ॥५६॥ २७०. अतिवत्तियं' अणाउटैि सयमण्णेसिं अकरणयाए ।
. जस्सित्थीओ परिण्णाता सव्वकम्मावहाओ सेऽदक्खू ॥५७॥ २७१. अहाकडंण से सेवे सव्वसो कम्मुणा य अदक्खू ।
जं किंचि पावगं भगवं तं अकुव्वं वियर्ड भुंजित्था ॥५८॥ २७२. णासेवइय परवत्थं परपाए वि से ण भुंजित्था ।
परिवज्जियाण ओमाणं गच्छति संखडिं असरणाए ॥ ५९॥ २७३. मातण्णे असणपाणस्स णाणुगिद्धे रसेसु अपडिण्णे ।
अच्छि पि णो पमज्जिया णो वि य कंडूयए मुणी गातं ॥६०॥
३.
"अदु (वा)सव्वजोणिया सत्ता" का अर्थ चूर्णिकार करते हैं - "अदुति अधसद्दा अवब्भंसो सुहदुहउच्चारणत्ता।' - 'अदु' शब्द 'अधसद्दा' या 'अदुहा' का अपभ्रंश है, इसका अर्थ होता है - जो अपने सुख-दुःख का उच्चारण कर (कह) नहीं सकते, ऐसे सर्वयौनिक प्राणी। 'भगवं च एवमण्णेसि - का अर्थ चूर्णिकार ने इस प्रकार किया है - च पूरणे, एवमवधारणे, एवं अनिसिला जं भणितं भवति अणुचिंतेत्ता।' - इस प्रकार भगवान् को अनिश्रित-अज्ञानी जो कुछ वचन बोलते थे, उस पर वे अनुचिन्तन करते। यानी सिद्धान्तानुसार चिन्तन करते थे। इसका अर्थ चूर्णि ने इस प्रकार किया है - "दुविह कीरतीति कम्म...सव्वतित्थगरक्खाय अन्नेलिसं- असरिसं किरियं च।" - दो प्रकार के कर्म ..."जो कि समस्त तीर्थंकरों द्वारा प्रतिपादित थे (उन्हें जानकर) असदृश - अनुपम क्रिया का प्रतिपादन किया। अतिवत्तिय के बदले किसी-किसी प्रति में "अतिवाइम अतिवातिय" पाठ मिलते हैं, इन दोनों का अर्थ है - पातक (पाप) से अतिक्रान्त - निर्दोष (निष्पाप) अतिवत्तियं का अर्थ चूर्णिकार ने यों किया है - अतिवत्तिय अणाउट्टि अतिवादिज्जति जेण सो अतिवादो हिंसादि, आउंटणं करणं तं अतिवातं णाउदृति - जिससे अतिपाद किया जाता है, वह अतिपाद-हिंसादि है। आकुट्टण करना अतिपात है - हिंसा है इसलिए अनाकुट्टि अहिंसा-अनतिपात का नाम है। 'सव्वसो कम्मुणा य अदक्खू' से लेकर 'जं किंचि पावगं' तक पंक्ति में पाठान्तर चूर्णिसम्मत यों है - कम्मुणा य अदक्ख जं किंचि अपावर्ग' अर्थात् - जो कुछ पापरहित है, उसे कर्म से देख लिया था।
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