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________________ २७४ आचारांग सूत्र/प्रथम श्रुतस्कन्ध 'अपंचाततरे' - का अर्थ चूर्णिकार ने किया है - यह आयतर है - यानी ग्रहण करने में दृढ़तर है। इसीलिए कहा है 'अयं से उत्तमे धम्मे ।' अर्थात् - यह सर्वप्रधान मरण विशेष है।' नमे देहे परीसहा - इस पंक्ति से आत्मा और शरीर की भिन्नता का बोध सूचित किया गया है। साथ ही यह भी बताया गया है कि परीषह और उपसर्ग तभी तक हैं, जब तक जीवन है। अनशन साधक जब स्वयं ही शरीर-भेद के लिए उद्यत है तब वह इन परीषह-उपसर्गों से क्यों घबराएगा? वह तो इन्हें शरीर-भेद में सहायक या मित्र मानेगा। 'धुवषण्णं सपेहिया' - शास्त्रकार ने इस पंक्ति से यह ध्वनित कर दिया है कि प्रायोपगमन अनशन साधक की दृष्टि जब एकमात्र ध्रुववर्ण - मोक्ष या शुद्ध संयम की ओर रहेगी तो वह मोक्ष में विघ्नकारक या संयम को अशुद्ध-दोषयुक्त बनाने वाले विनश्वर काम-भोगों में, चक्रवर्ती - इन्द्र आदि पदों या दिव्य सुखों के निदानों में क्यों लुब्ध होगा? वह इन समस्त सांसारिक सजीव-निर्जीव पदार्थों के प्रति अनासक्त एवं सर्वथा मोहमुक्त रहेगा। इसी में उसके प्रायोपगमन अनशन की विशेषता है। इसीलिए कहा है - __'दिव्यमायं ण सद्दहे' - दिव्य माया पर विश्वास न करे, सिर्फ मोक्ष में उसका विश्वास होना चाहिए। जब उसकी दृष्टि एकमात्र मोक्ष की ओर है तो उसे मोक्ष के विरोधी संसार की ओर से अपनी दृष्टि सर्वथा हटा लेनी चाहिए।३ . ॥ अष्टम उद्देशक समाप्त ॥ ॥ अष्टम विमोक्ष अध्ययन सम्पूर्ण ॥ १. २. आच० शीला० टीका पत्रांक २९५ आचा० शीला० टीका पत्रांक २९५ आचा० शीला० टीका पत्रांक २९५
SR No.003436
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages430
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Conduct, & agam_acharang
File Size9 MB
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