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षष्ठ अध्ययन : पंचम उद्देशक: सूत्र १९६ - १९८
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आहत होने पर फलकवत् सुस्थिर रहना चाहिए। अन्यथा समाधि-मरण का अवसर खोकर वह बालमरण को प्राप्त हो जाएगा । १
'से हु पारंगमे मुणी' जो मुनि मृत्यु के समय मोहमूढ़ नहीं होता, परीषहों और उपसर्गों को समभाव से सहता है, वह अवश्य ही पारगामी, संसार या कर्म का अंत पाने वाला हो जाता है। अथवा जो संयम भार उठाया था, उसे पार पहुँचाने वाला होता है।
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आचा० शीला० टीका पत्र २३४ आचा० शीला० टीका पत्र. २३४
॥ पंचम उद्देशक समाप्त ॥
॥ 'धूत' षष्ठ अध्ययन समाप्त ॥