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________________ उसका अर्थ दिया गया है। फिर भी प्रायः सभी मतान्तरों का प्रामाणिकता के साथ उल्लेख अवश्य किया है। द्वितीय श्रुतस्कन्ध के अनेक कठिन पारिभाषिक शब्दों के अर्थ करने में निशीथसूत्र व चूर्णि-भाष्य तथा बृहत्कल्पभाष्य आदि का भी आधार लिया गया है। हमारा प्रयत्न यही रहा है कि प्रत्येक पाठ का अर्थबोध - अपने परम्परागत भावों का उद्घाटन करता हुआ अन्य अर्थों. पर चिन्तन करने की प्रेरणा भी जागृत करता जाए। कभी-कभी शब्द प्रसंगानुसार अपना अर्थ बदलते रहते हैं। जैसे - स्पर्श, गुण ' एवं आयतन आदि.। आगमों में प्रसंगानुसार इसके विभिन्न अर्थ होते हैं। उनका दिग्दर्शन कराकर मूल भावों का उद्घाटन कराने वाला अर्थ प्रस्तुत करने का प्रयत्न किया गया है। पाठान्तर व टिप्पण __ चूर्णि में पाठान्तरों की प्राचीन परम्परा दृष्टिगत होती है। जो पाठान्तर नया अर्थ उद्घाटित करते हैं या अर्थ की प्राचीन परम्परा का बोध कराते हैं, ऐसे पाठान्तरों को टिप्पण में उल्लिखित किया गया है। चर्णि में विशेष शब्दों के अर्थ भी दिए गए हैं,जो इतिहास व संस्कृति की दृष्टि से भी महत्त्वपूर्ण प्रतीत होते हैं। उन चूर्णिगत अर्थों का मूलपाठ के साथ टिप्पण में विवरण दिया गया है। ___अब तक के प्रायः सभी संस्करणों में टिप्पण आदि प्राकृत-संस्कृत में ही दिए जाने की परिपाटी देखने में आती है। इससे हिन्दी-भाषी पाठक उन टिप्पणों के आशय समझने से वंचित ही रह जाता है। हमारा दृष्टिकोण आगमज्ञान व उसकी प्राचीन अर्थ-परम्परा से जन साधारण को परिचित कराने का रहा है, अतः प्रायः सभी टिप्पणों के साथ उनका हिन्दी-अनुवाद भी देने का प्रयत्न किया है। यह कार्य काफी श्रमसाध्य रहा, पर पाठकों को अधिक लाभ मिले इसलिए आवश्यक व उपयोगी श्रम भी किया है। इसमें चार परिशिष्ट भी दिए गए हैं। प्रथम परिशिष्ट में जाव' शब्द से सूचित मूल सन्दर्भ वाले सूत्र तथा ग्राह्य सूत्रों की सूची, द्वितीय में विशिष्ट शब्द-सूची तथा तृतीय परिशिष्ट में गाथाओं की अकारादि सूची भी दी गयी है। चौथे परिशिष्ट में मुख्य रूप में प्रयुक्त सन्दर्भ ग्रन्थों की संक्षिप्त किन्तु प्रामाणिक सूची दी गयी है। युवाचार्य श्री मधुकर मुनि जी महाराज का मार्गदर्शन, आगम अनुयोग प्रवर्तक मुनि श्री कन्हैयालाल जी 'कमल' की महत्त्वपूर्ण सूचनाएं तथा विद्वद्वरेण्य, श्रीयुत् शोभाचन्दजी भारिल्ल की युक्ति पुरस्सर परिष्कारक दृष्टि आदि इस सम्पादन, विवेचन को सुन्दर, सुबोध तथा प्रामाणिक बनाने में उपयोगी रहे हैं। अत: उन सब का तथा प्राचीन मनीषी आचार्यों, सहयोगी ग्रन्थकारों, सम्पादकों आदि के प्रति पूर्ण विनम्रता के साथ कृतज्ञभाव व्यक्त करता हूँ। इस महत्वपूर्ण कार्य को सुन्दर रूप में शीघ्र सम्पन्न करने में मुनि श्री नेमिचन्दजी म. का मार्गदर्शन तथा स्नेहपूर्ण सहयोग सदा स्मरणीय रहेगा। ___ यद्यपि यह गुरुतर कार्य सुदीर्घ चिन्तन अध्ययन, तथा समय सापेक्ष है, फिर भी अहर्निश के सतत् प्रयत्न व युवाचार्य श्री की उत्साहवर्धक प्रेरणाओं से मात्र चार मास में ही इसे सम्पन्न कर पाठकों की सेवा में प्रस्तुत किया है। विश्वास है, अब तक के सभी संस्करणों से कुछ भिन्न, कुछ नवीन और काफी सरल व विशेष अर्थबोध प्रकट करने वाला सिद्ध होगा। सुज्ञ पाठक इसे सुरुचिपूर्वक पढ़ेंगे - इसी आशा के साथ। -श्रीचन्द सुराना 'सरस' १. पृष्ठ २४ २. पृष्ठ ५४
SR No.003436
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages430
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Conduct, & agam_acharang
File Size9 MB
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