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द्वितीय उद्देशक में विभिन्न धर्म-प्रवादियों (प्रवक्ताओं) के प्रवादों में युक्त-आयुक्त की विचारणा होने से धर्म-परीक्षा का निरूपण है। तृतीय उद्देशक में निर्दोष-निरवद्य तप का वर्णन होने से उसका नाम सम्यक् तप है। चतुर्थ उद्देशकं में सम्यक् चारित्र से सम्बन्धित निरूपण है। इस प्रकार चार उद्देशकों में क्रमशः सम्यग्ज्ञान, सम्यग्दर्शन, सम्यक् तप और सम्यक् चारित्र, इन चारों भाव सम्यकों का भलीभाँति विश्लेषण है। नियुक्तिकार ने भाव सम्यक् के तीन ही प्रकार बताये हैं-सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र। इनमें दर्शन और चारित्र के क्रमशः तीन-तीन भेद हैं - (१) औपशमिक, (२) क्षायोपशमिक और (३) क्षायिक । सम्यग्ज्ञान के दो भेद हैं - (१) क्षायोपशमिक
और (२) क्षायिक ज्ञान । प्रस्तुत चतुर्थ अध्ययन के चार उद्देशक सूत्र १३२ से प्रारम्भ होकर सूत्र १४६ पर समाप्त होते
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१. २.
आचा० नियुक्ति गाथा २१५, २१६ (क) आचा० नियुक्ति गाथा ११९, तत्त्वार्थ सूत्र २।३ (ख) आचा० शीला० टीका पत्रांक १५९ .