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तृतीय अध्ययन : चतुर्थ उद्देशक : सूत्र १३०-१३१
१०९ स्वरूप तथा परिणाम आदि को जो पहले ज्ञपरिज्ञा से जानता है, देख लेता है, फिर प्रत्याख्यानपरिज्ञा से उनका परित्याग करता है, क्योंकि ज्ञान सदैव अनर्थ का परित्याग करता है।
___ 'ज्ञानस्य फलं विरति' - ज्ञान का फल पापों का परित्याग करना है, यह उक्ति प्रसिद्ध है। इसी लम्बे क्रम को बताने के लिए शास्त्रकार स्वयं निरूपण करते हैं - ___ 'से मेहावी अभिणिवट्टेज्जा कोधं च क्रोधादि के स्वरूप को जान लेने के बाद साधक क्रोधादि से... तुरन्त हट जाये, निवृत्त हो जाए।'
॥चतुर्थ उद्देशक समाप्त ॥
॥ शीतोष्णीय तृतीय अध्ययन समाप्त ॥
आचा० शीला० टीका पत्रांक १५८