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________________ ४४] पश्चिमी भारत की पात्रा के बाद जनरल डॉन्किन की (दक्षिणी) सेना को आज्ञा हुई कि वह मेवाड़ को शत्रुओं से शून्य कर दे और कुम्भलमेर के सदढ़ दुर्ग को अधिकृत करले, जिसका रक्षक-दल अति दुर्दम्य था। पोलिटिकल-एजेण्ट कर्नल टाँड को जब यह ज्ञात हुआ तो वह स्थिति-स्थल पर आया और उसने आपसी बातचीत से प्रभाव डालने का निश्चय किया। जनरल के मना करने पर भी बुटिश थाने और गढ़ के बीच प्राधे रास्ते आगे जाकर उसने अकेले ही सरदारों से मिलने की इच्छा प्रकट को । उन्होंने भी स्वीकार कर लिया; चार सरदार उसके साथ एक चट्टान पर बैठे और आधे घण्टे में ही सब कुछ ठीक हो गया अर्थात् सेना को चढ़ा हमा वेतन मिल जायगा और दूसरे ही दिन प्रातःकाल बृटिश दल को प्रथम द्वार पर अधिकार दे दिया जायगा । सूर्योदय होते ही कर्नल टॉड कर्नल केसमेण्ट की अध्यक्षता में सेना लेकर चल पड़ा। जो रुपया वसूल होना था वह ४०,००० (४,००० पौण्ड) था; कर्नल केसमैण्ट को जो मिला वह केवल ११,००० रु० था; परन्तु, पोलिटिकल एजेन्ट अपने साथ एक स्थानीय साहूकार को लाया था जिसने बाकी रकम की हण्डी लिख दी और वह स्वीकार कर ली गई; ज्योंही एक इञ्जीनियर मैदान से २५००० फीट की ऊंचाई पर स्थित इस स्थान के घेरे की सम्भावना की रिपोर्ट लेकर पहुंचा तो किला तुरन्त खाली कर दिया गया; यह तीन ओर से आक्रमण के लिए खुला था और पुलिया का रास्ता भी सरल था और कोई शरण-स्थान भी उपलब्ध नहीं था । इजीनियर (मेजर मॅक्लिप्रॉड Major Macleod) ने बताया कि उसने छः सप्ताह तक एक भी बन्दूक मोर्चे पर नहीं लगाई। 'यह बताने के लिए, कि उसने जो प्रकार अपनाया था वह कितना सरल और पूर्ण था तथा यदि इनको भावनाओं और पूर्वाग्रहों के माध्यम से व्यवहार किया जाय तो यहाँ के लोग कितने विनय है, उसने समझोते का विवरण लिखा है "विवाद का प्रारम्भ एक असम्बद्ध विषय से हुमा क्योंकि मतभेद और वैमनस्य होने पर भी इन लोगों के सौजन्य में किसी प्रकार की कमी नहीं पाती। मेरा पहला प्रश्न प्रत्येक सरदार के 'वतन' के बारे में था, जो प्रत्येक मानवीय प्राणी के लिए रुचि का विषय है। वे सब मुसलिम थे और उनमें से दो रुहेलखण्ड से पाए थे; इन लोगों से मैंने इनके 'वतन', वहां के शहरों, जिनको मैं देख चुका था और वीर हाफिज रहमत के बारे में बातचीत की। दूसरे लोग सिंधिया की सेवा में रह चुके थे और हम लोग छावनी में मिल चुके थे । कोई दस मिनट इन बातों में लगे होंगे कि सहानुभूतिपूर्ण नैतिक बन्धनों ने हमारे बीच से अपरिचितता को दूर हटा दिया। जब आपस में विश्वास पैदा हो गया तो मुख्य बात पर विचार प्रारम्भ हुमा और मैंने उन्हें विश्वास दिलाया कि कुम्भलमेर को समर्पित कर देने में उनका हित ही होगा, अपयश नहीं। मैंने उनको स्थिति को कठिनाई बताते हुए यह भी कहा कि एक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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