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________________ ग्रन्थकर्ता-विषयमा संस्मरण [ ४३ बहुत सी बातों में यहां के निवासियों से पूर्ण मेल खाते थे; इस प्रकार इनमें ऐसा भावात्मक तालमेल बैठ गया था कि एक ओर विश्वास में वृद्धि होती जा रही थी तो दूसरा पक्ष महान् नैतिक प्रभावों से प्रेरित हो रहा था। हमारे योग्यतम आंग्ल-भारतीय राजनीतिज्ञों का कथन है (जिसके लिए स्थानीय अनुभव आवश्यक नहीं है, क्योंकि वह मूलभूत मानव-प्रकृति पर आधारित है) कि कोई भी योरपीयन हिन्दुओं में रह कर सुग्राह्य एवं उपयोगी कार्यकर्ता सिद्ध नहीं हो सकता जब तक कि वह उनकी भाषा, चलन और संस्थानों से परिचित न हो और साथ ही उसमें समान भाव से सामाजिक स्तर पर उन लोगों में घुलमिल जाने की क्षमता न हो । ऐसी दशा में, सुधार के प्रतिरोधक पूर्वाग्रह दोनों ही पक्षों में से तिरोहित हो जायेंगे; जब उन्हें यह ज्ञात हो जायगा कि उन्हें जो सुझाव दिये जा रहे हैं वे उनकी भलाई के लिए गम्भीर और दृढ़ भावनाओं पर आधारित हैं तो भारतीय-जन हमारे दृष्टिकोण को तुरन्त अपना लेंगे; और उधर, जैसा कि सर थामस मुनरो ने ठीक ही कहा है 'जो लोग अधिक से अधिक समय तक यहां के निवासियों के बीच में रह चुके हैं (जो उनके पक्ष में सुदृढ़ दलील है) वे प्रायः उनके विषय में ऊंचे-से-ऊँचे विचार रखते हैं।' अन्यतम गम्भीर विचारक कोलक का मत है कि 'जो योरोपियन यहां के निवासियों में कभी घुला-मिला नहीं है वह उनके मौलिक गुणों को नहीं जान सकता और इसीलिए उनको पसंद नहीं करता क्योंकि जब वे मिलते हैं तो एक ओर भय छ'या रहता है और दूसरी ओर अभिमान एवं सत्ता का मद ।' राजा से लेकर सामान्य कृषक तक से जो स्नेह और लगाव कर्नल टॉड ने प्राप्त किया था वही उसकी सफलता का महान् रहस्य था, जो बृटिश भारत के शासकों को क्रियात्मक पाठ पढ़ाने वाला था। __ स्थानीय गुणों को जानकारी और गम्भीर प्रापत्कालीन परिस्थितियों में उसके प्रयोग-विषयक नैतिक बल का जागत उदाहरण हमें निम्न उपाख्यान में मिलता है, जो उसने स्वयं लेखबद्ध किया है।' १८१७-१८ ई० में युद्ध विराम ' लीग (Glicg) लिखित सर थामस मुनरो का जीवन चरित्र; भा० २, पृ. १२; दक्षिण के कमिश्नर मिस्टर चैपलिन कोई बीस वर्ष से भी अधिक समय तक भारतीयों के सम्पर्क में रहे थे; उन्होंने १८३१ ई० में पूर्व भारतीय विषयों की लोक-समिति में प्रकट किया था कि जैसे-जैसे मैं देशी जनों के अधिक सम्पर्क में पाया वैसे-वैसे ही मेरा मत उनके विषय में अच्छा से अच्छा होता चला गया और वे संसार के किसी भी देश के निवासियों के मुकाबले में उत्कृष्ट प्रमाणित होंगे।' २ एशियाटिक जर्नल, वॉल्यूम १६; पृष्ठ २६४ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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