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________________ ग्रन्थका-विषयक संस्मरण कर्नल टॉड के कुछ मित्रों ने इस बात पर आश्चर्य प्रकट किया कि जब ईस्ट इण्डिया कम्पनी के अफसरों को सम्राट की ओर से सम्मानित किया गया तो उसका नाम उपेक्षा में रह गया । ऐसा कभी नहीं हुआ कि उसकी सेवाओं का अवमूल्यन किया गया हो प्रत्युत 'कोर्ट आफ डायरेक्टर्स' (संचालक मण्डल) ने सदा ही उसकी सुन्दर सराहना की थी; और महान भारतवर्ष को संस्थापना के प्रश्न से पूर्व हुई जाँच में पश्चिमी भारत को लेकर उसके अनुभव और निर्णयों को सरकार ने प्रसन्नता-पूर्वक ग्रहण भी किए थे। सन् १८३३ ई० में हुई 'पूर्वीय-भारत सम्बन्धी' विषयों पर लोक-सभा की समिति ने अपने अन्तिम साक्ष्य-विवरण (Minutes of Evidence) की रिपोर्ट के परिशिष्ट में वह प्रशंसनीय लेख-पत्र भी विशेष रूप से छपवाया है, जो उसने इस पर लेखबद्ध किया था। उसके लिए कुछ वैधानिक बाधाएं अवश्य थीं परन्तु यदि उसके स्वभाव में अपने प्राप्य के लिए याचना करने वालो बात होती तो वे सब टाली जा सकती थों और वह उन लोगों के मुकाबले में घाटे में न रहता जिन्होंने अपने आपको ‘राजमुकुट' की कृपा प्राप्त करने योग्य मनोवृत्ति का बना लिया था। कुछ ऐसे अवसरों पर उसका नाम शामिल न करने में बहाना बनाते हुए कर्नल टॉड को सूचित किया गया कि जो व्यक्ति सेना में सक्रिय सेवा से निवृत्त हो चुके थे अथवा जो सैनिक सेवाओं के लिए औपचारिक रूप से राजपत्रित नहीं थे उनको ऐसा सम्मान नहीं दिया गया था। ऐसे कारणों की निरर्थकता पर उसने समय-समय पर टिप्पणी को है जिससे ज्ञात होता है कि ऐसी टालमटोल से वह कुछ ग्राहत हो गया था। परन्तु, यदि कोई ऐसा चिह्न उसे प्राप्त भी होता तो उससे सार्वभौमसत्ता सप्ताह पहले जो परिस्थिति थी अब यह भी नहीं रही है कि उन्हें मारवाड़ से नित्र और रसन दोनों मिल सकें क्योंकि मैदान वाले सरदार को मेरे कथनानुसार सभी रास्ते बन्द कर देंगे; यह बात तो वे लोग अच्छी तरह जानते ही थे कि उन्होंने वहाँ और मारवाड़ में बहुत से शत्रु पैदा कर लिए थे; इसका फल यह होगा कि वे सही-सलामत लौर भी न सकेंगे--परन्तु, यदि वे प्रात्म-समर्पण कर देंगे तो इसका दायित्व लेने को में तैयार था" ' टॉड के एक मित्र ने लिखा है 'यह बड़ी विचित्र बात है कि जिसने कला और साहित्य के लिए तथा सैनिक और कूटनीतिक पदों पर रहते हुए इतना काम किया उतको सम्राट् की ओर से कोई सम्मान न मिले; परन्तु, वह ऐसा प्रादमी था कि जो कुछ उसका प्राप्य अधिकार था उसके लिए याचना करने के निम्नस्तर पर उतरना कभी पसन्द नहीं करता था।' Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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