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पश्चिमी भारत की यात्रा सोसाइटी को पश्चिमी भारत से प्राप्त छः खरे भेंट किए जिनका विवरण एम. बरनॉफ (M. Burnouf) ने दिया और यह अनुरोध किया कि उनका शिलामुद्रण (लीथो-छाप) करा कर फ्रांस और जर्मनी में प्रसार किया जाय ।
उसकी सैनिक पद-वृद्धि , जो अब तक रुकी पड़ी थी, अब द्रुतगति से आगे बढ़ने लगी। पहली मई, १८२४ ई० को उसने 'मेजर' का पद प्राप्त किया और उसे २ जून, १८२६ को लेफ्टिनेण्ट कर्नल बना कर दूसरी यूरोपियन रेजिमेण्ट में परिवर्तित कर दिया गया; यह वही सेना-विभाग था जिसमें उसने अपना जीवन प्रारम्भ किया था। उसके स्वास्थ्य की दशा ने उसके लिए भारत लौटना अनुपयुक्त बना दिया यद्यपि उसके राजपूताना के निवासी मित्र इसके लिए बहुत इच्छुक थे; अन्त में, २८ जून, १८२५ ई० को उसने सेवा से निवृत्ति प्राप्त कर ली।
१८२६ ई० में 'राजस्थान का इतिहास' की पहली जिल्द प्रकाशित हुई जिससे स्थानीय एवं विदेशी प्राच्यविद्या-विद्वानों में बड़ी हलचल मच गई। साधारण पाठक-वर्ग में सर्वप्रियता प्राप्त करने में इस कृति को बड़ी-बड़ी अड़चनों का सामना करना पड़ा; क्योंकि यह साधारण इतिहास को ही पुस्तक नहीं थी अपितु ऐसे देश का इतिहास इसमें लिखा गया था, जो सर जॉन मालकम लिखित 'मध्यभारत के संस्मरण' (Memoirs of Central India, जिसमें उन्होंने राजपूताना को तो शायद ही स्पर्श किया हो) के प्रकाशित होने तक नितान्त अपरिचित रहा था। ग्रन्थकर्ता के नाम को, उस समय योरप की जनता में एवं भारत-स्थित बृटिश समाज में, उसके ढंग की रचनाओं को प्रचार देने के लिए वह प्रसिद्धि नहीं मिली थी कि जिससे बहुत-सी पुस्तकों को विक्रेय-सम्मान प्राप्त होता है । कर्नल टॉड के एक घनिष्ठ मित्र का कहना है कि 'उसका मार्ग भारत में यूरोपीय समाज को शायद ही गति देने वाला था और उसके लगाव आसपास के देशी वातावरण पर ही अधिक केन्द्रित थे। इस कृति के प्रति लन्दन के प्रकाशकों का आकर्षण इतना शिथिल रहा कि उसके प्रकाशन की पूरी जोखिम और खर्चा उसे अपने ऊपर ही लेना पड़ा, जो उसने बड़े उत्साह के साथ वहन किया; और छपाई (एक फलक तैयार कराने के इस अत्यन्त व्ययशील महान कार्य के परिणाम) में उसके मर्यादित धन-कोष का कोई साधारण भाग नहीं बहाया गया था। अर्थ-लाभ उसका उद्देश्य नहीं था और न सामान्य अर्थों में कीर्तिलाभ हो; उसका मूल प्रेरक उद्देश्य तो, जैसा कि उसने अपने 'सम्राट को समर्पण' में लिखा है, 'उसका परमकर्तव्य' मात्र था, ‘एक प्राचीन और आकर्षण-भरे मानव-समाज से विश्व को परिचित कराना।' कुछ
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