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ग्रन्थकर्ता-विषयक संस्मरण
[ ३७ भो हो, इतने व्यवधान और प्रकाशन का भारी व्यय होते हुए भी, इसने धीरेधोरे देश के स्थायी साहित्य में अपना स्थान प्राप्त कर लिया। हमारे नियतकालिक आलोचनात्मक पत्रों ने इस कृति के विषय में बहुत ही अनुकूल वाक्य लिखे, प्राच्य-अध्ययन के परम अनुभवी विद्वानों से भी योरपीय महाद्वीप में इसने भूरि-भूरि प्रशंसा प्राप्त की; और बुटिश भारत में, जहाँ इसका सब से अच्छा मूल्यांकन हो सकता है, यह एक प्राधार-ग्रन्थ माना जाता है । प्राचार्य मिल Miill) हमारे प्रथम संस्कृत-विद्वानों में से हैं और वे प्राचीन भारतीय इतिहास के बहुत ही सफल अनुसन्धानकर्ताओं में माने जाते हैं; उन्होंने 'इतिहास' के विषय में अपना मत-निरूपण करते हुए लिखा है कि 'यह प्राच्य और सामान्य साहित्य के लिए एक मूल्यवान और विशाल देन है।' वास्तव में, यह एक खान है जिसमें से पश्चिमी भारत के विषय में अब भी आधुनिक लेखक सूचनाएं प्राप्त करते हैं; इन क्षेत्रों के विषय में नित्य नया ज्ञान विवरण को यथार्थता और शुद्धता के प्रमाणों को उपस्थित कर रहा है। 'इतिहास' की दूसरी और अंतिम जिल्द १८३२ ई० के प्रारम्भ में सामने आई। ___जो लोग इस विशाल ग्रंथ का धैर्य से अवगाहन करने का साहस करेंगे उनको सत्य पर अाधारित और मौलिक इतिहास की अन्तनिहित विपुल सामग्री से सम्पन्न इस 'राजस्थान का इतिहास' में असाधारण आकर्षण के विषय उपलब्ध होंगे; इसके बहुत से अंश सुघटित कथात्मकता की मनोहारिता लिए हुए हैं, जिनमें पात्रों के वीरोचित गुणों और घटनाओं के विवरण निबद्ध हैं; इसमें हिन्दू समाज के परम अद्भुत और सही-सही चित्र उपस्थित किए गए हैं। स्थानीय दृश्यों, प्राचीन नगरों और भवनों का सूक्ष्म पालेखन हुआ है जिन पर से युगों के बाद विस्मति का प्रावरण अपसारित किया गया है, पुरातात्विक व्याख्यानों की मीमांसा की गई है, आत्म-विवरणों की सरलता और सजीवता प्रदर्शित हुई है और देशीय ख्यातों अथवा इतिवृत्तों के जो उद्धरण अनूदित किए गए हैं उनकी महाकाव्यात्मकता एवं ग्रन्थकर्ता की प्रोजपूर्ण निजी शैली, जो यद्यपि प्राच्य रचनाओं की हीनता से प्रभावित होकर कहीं-कहीं अपनी शुद्धता खो बैठी है, मिल कर कितने ही अनुच्छेदों में उत्कट और उच्चतम प्रवाह-पूर्णता को उद्भूत करते हैं । राजपूत इतिहास की कतिपय आँखों देखी महत्त्वपूर्ण घटनाओं के इतिहासकार ने, जो कितने ही मामलों में स्वयं मध्यस्थ रह चुका था, सोत्साह इस विवरण में निजी भावनाओं का भी एक अंश सन्निविष्ट कर दिया है जिसमें उसके जीवन के कितने ही साहसिक कार्यों का व्यौरा भी सम्मिलित है। यदि यह इतिहास लेखन के कड़े नियमों के विरुद्ध हो (यद्यपि
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