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पश्चिमी भारत की यात्रा
जिस समय इस भूभाग में अंग्रेजों का एक अधिकारी बन कर आया
और उसको इस प्रदेश के भिन्न-भिन्न राजवंशों का विशेष परिचय प्राप्त हुआ तो कुछ-कुछ प्रादेशिक विभिन्नताएं होते हुए भी इस प्रदेश के निवासियों में उसने अत्यधिक पारस्परिक समानता देखी। इस भूभाग में जिन भिन्न-भिन्न राजवंशों का राज्य-शासन चल रहा था वे सब एक ही जाति-समूह के अगभूत थे। उनके कुलों और वंशों का वैयक्तिक एवं कौटुम्बिक सम्बन्ध परस्पर सङ्कलित था। वे सब बहुत प्राचीनकाल से राजपूत कहलाते रहे हैं। इस प्रकार के राजपूतों का समान-जातिक विशाल और सत्ताशाली एकत्र समूह भारत में अन्यत्र कहीं नहीं रहा । इसलिए तत्कालीन अन्यान्य अंग्रेज अधिकारियों ने राजपूतों के इस प्रदेश को राजपूताना नाम देकर इसकी पहिचान दो।
कर्नल टॉड इतिहास का अद्भुत प्रेमी था। अंग्रेजों का प्रभुत्व जब भारत पर धीर-धीरे फैलने लगा तो स्वभावत: ही इस महान् राष्ट्र के इतिहास और सब प्रकार के सांस्कृतिक एवं जानपदीय जनजीवन के विषय में जानकारी प्राप्त करने की उनकी इच्छा तथा आवश्यकता बढ़ी और उनमें से अनेक विद्वान् अपने-अपने अधिकारगत प्रदेशों और स्थानों को तत्-तद्विषयक जानकारी प्राप्त करने के प्रयत्न में लग गये ।
कर्नल टॉड इंग्लैंड से अंग्रेजों की सेना में भर्ती होकर सन् १८०० ई० में सर्वप्रथम बंगाल में आया। वहाँ से उसको दिल्लो भेजा गया, जहाँ वह ४-५ वर्ष तक रहा । तत्पश्चात् सिंधिया के दरबार में पोलिटिकल एजेन्ट के सहायक के रूप में उसकी नियुक्ति हुई। सिंधिया के दरबार के साथ मध्यभारत तथा राजस्थान एवं उसके समीपस्थ प्रदेशों में सैनिक कार्यवाही के निमित्त विभिन्न स्थानों और मार्गों का सर्वेक्षण करने-कराने का महत्वपूर्ण काम उसे करना पड़ा। इस सर्वेक्षण के समय अनेकानेक प्राचीन स्थानों और उनके निवासियों के विषय में विशिष्ट जानकारी प्राप्त करने की उसको जन्मजात इतिहासप्रिय अभिरुचि बढ़ने लगी और वह तत्तत् स्थानों और जनसमूहों के विषय की विविध प्रकार को ऐतिहासिक सामग्री का यथाशक्य और यथा
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