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________________ सञ्चालकीय वक्तव्य साधन संग्रह करने लगा। सन् १८१७-१८ ई० में जब मेवाड़, मारवाड़, गोड़वाड़, हाडौतो और ढूंढाड़ जैसे राजपूत जातीय राज्यों का अंग्रेजों के साथ राजनैतिक सन्धिस्थापना का कार्य सम्पन्न हुआ तब अंग्रेजी शासन के तत्कालीन सर्वसत्तासम्पन्न गवर्नर-जनरल ने पश्चिमी भाग के इन राजपूत राज्यों के लिए कर्नल टॉड को अपना राजनीतिक प्रतिनिधि (पोलिटिकल एजेन्ट) बनाकर उदयपुर में नियुक्त किया । उदयपुर में रहते हुए उसको अपने प्रिय विषय इतिहास की बहुविध सामग्री का विशिष्ट संकलन करने का यथेष्ट अवसर मिला। इसके लिए उसने बहुत सा धन भी व्यय किया और अत्यधिक शारोरिक श्रम भी उठाया। उसने यहाँ की भाषामों को अच्छी तरह सोखा, संस्कृत, प्राकृत, फारसी, अरबी आदि भाषाओं के जानकारों को भी, अपने द्रव्य से, अपने पास रख कर, वह साहित्यिक सामग्री का अन्वेषण, अनुसन्धान और संकलन उनसे कराता रहा। प्राचीन शिलालेख ताम्रपत्र, पट्टों इत्यादि का भी उसने संग्रह किया । भाट, बारहठ, चारण, राव आदि के मुखजबानी जो कुछ पुरानी कथा-कहानियाँ वह सुनता रहता था, उनके भी उद्धरण, टिप्पण आदि लिखता लिखाता रहता था । इस प्रकार राजपूत राज्यों के प्राचीन इतिहास पर प्रकाश डालने वाली विशाल सामग्री उसने इकट्ठी करली। उस सामग्री के अध्ययन से और तत्कालीन राजस्थान के प्रमुख निवासियों के सहानुभूतिपूर्ण सम्पर्क से उसके मन पर इस प्रदेश की समग्र संस्कृति का अत्यधिक प्रभाव पड़ा। तत्कालीन अन्यान्य सत्ताधारी अंग्रेज अधिकारियों की अपेक्षा वह यहाँ के लोगों का बहुत हितैषी बन गया और अपने अधिकार का प्रयोग सब लोगों के हित की दृष्टि से करने लगा । राजाओं तथा जागीरदारों को भी वह जनहितकारी और न्यायप्रिय बातें बताता रहा । अंग्रेजों की जो शासन करने को स्वार्थी और आतंकात्मक नीति विकसित होती जाती थी उसका भी वह कभी-कभी विरोध करता रहता था। उसके इस प्रकार के जनहितकारी व्यवहार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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