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पश्चिमी भारत की यात्रा
और उदार विचार की कुछ गन्ध कलकत्ता के उच्च सत्ताधारी अंग्रेज शासकों तक पहुँची तो वे कुछ संदेह की दृष्टि से उसकी प्रवृत्तियों का पर्यवेक्षण करने लगे ।
कर्नल टॉड बड़ा स्वाभिमानी, न्यायप्रिय, निष्पक्ष, निःस्वार्थ और सच्चा साहित्योपासक था। उसको जब यह शंका होने लगी कि मेरे सन्निष्ठ कार्य के विषय में ऐसा कुत्सित संदेह सत्ताधीशों के मन में उत्पन्न हो रहा है तो उसने अपने अधिकार - पद से त्यागपत्र दे दिया और वह अपने देश इंग्लैंड चले जाने को तैयार हो गया तथा वहीं बैठ कर जिस देश के प्राचीन इतिहास की बहुमूल्य और पूर्व सामग्री उसने संगृहीत की थी उसको सुव्यवस्थित रूप में लिखकर संसार के सामने प्रकट कर देने का संकल्प किया ।
सन् १८०० ई० के प्रारम्भ में वह इंग्लैंड से भारत आया था । कुछ दिनों तक कलकत्ता प्रादि स्थानों पर रहकर वह दिल्ली पहुँचा । वहाँ ४-५ वर्ष रहने के पश्चात् सन् १८०६ में वह सिन्धिया के दरबार में नियुक्त हुआ । लगभग १२ वर्ष तक वह सिन्धिया के दरबार से संबद्ध रहा और सन् १८१८ ई० के प्रारम्भ में वह उदयपुर का पोलिटिकल एजेन्ट होकर रहने आया । प्रायः साढ़े चार वर्ष तक वह उदयपुर में इस पद पर रहा और जून, १८२२ ई० में अपने पद और प्रिय प्रदेश को छोड़कर अपनी जन्मभूमि को जाने के लिए निकल पड़ा ।
उदयपुर में रहते हुए उसने, उदयपुर के अतिरिक्त जोधपुर, जंगलमेर, कोटा, बूंदी, सिरोही आदि, राजस्थान के महत्त्व के राज्यों की भी यात्रायें की और उन-उन राज्यों से संबद्ध ऐतिहासिक सामग्री का भी अच्छी तरह संकलन किया । उदयपुर से आखिरी विदा लेते समय उसने यह सब अमूल्य एवं अपूर्व सामग्री अपने साथ ली ।
राजस्थान के इतिहास से संबद्ध प्राचीन गुजरात और सौराष्ट्र के स्थानों का उसे प्रत्यक्ष अवलोकन करना था इसलिए वह उदयपुर से
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