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पश्चिमी-भारत की यात्रा मुसलमानों ने वे तथ्य कहाँ से खोज निकाले जो अबुलफजल ने लेखबद्ध किए हैं ?" कर्नल टॉड ने राजपूतों को ऐतिहासिक कृतियों को खोज निकालने के लिए जो प्रयत्न किये थे उनका वर्णन 'राजस्थान का इतिहास' के प्रथम भाग की भूमिका में किया गया है । ऐसा लगता है कि राजारों के पुरालेख-संग्रहों में ही नहीं जैनमत (जिसका अनुयायी उसका विद्वान् गुरु भी था) के महान ग्रन्थ-भण्डारों' में भी उसका अबाध प्रवेश था, जो मुसलमानों के सूक्ष्म-निरीक्षण से बचे रह गए थे; वहाँ से बड़े-बड़े मूल्यवान् ग्रन्थ ले आने की उसे अनुमति प्राप्त थी; वे ग्रन्थ 'रॉयल एशियाटिक सोसाइटी' के पुस्तकालय में जमा हैं। मेंवाड़ के राणा ने अपने संग्रह में से उसे 'पुराणों' की पवित्र पाण्डुलिपियाँ उधार दिए जाने की इजाजत दे दी थी जिनमें से उसने राजपूत शाखाओं की वशावलियों का उद्धार किया। साहित्यिक अभिरुचि और असामान्य विद्वत्ता के धनी मारवाड़ के राजा मान ने अपने वंश की मुख्य-मुख्य ख्यातों की नकलें उसके लिए करवाईं जो अब भी 'सोसाइटी' के पुस्तकालय में जमा हैं । जैसलमेर के प्रधानमंत्री ने उसके लिए 'जोयों की ख्यात' भेजी, जो जीतों (Jits) की एक जाति है और बीकानेर के एक जिले पर अधिकार जमाए हुए है (इनमें सिकन्दर महान् की कुछ परम्पराएं सुरक्षित हैं)। उसने इस देश में जो अन्य मूल्यवान ऐतिहासिक कृतियाँ प्राप्त की उनमें राजपूत होमर (अथवा प्रोसियन) चन्द के काव्यों का उल्लेख किया जा सकता है जिसकी एक सम्पूर्ण विद्यमान प्रति कर्नल टॉड के पास थी और ये काव्य प्रामाणिक इतिहास माने जाते हैं; और भी बहुत से चरित्र उसको मिले, मुख्यत: 'कुमारपाल-चरित्र' अथवा अणहिलवाड़ा का इतिहास जिसमें से प्रभूत मात्रा में इस पुस्तक में उद्धरण दिये गये हैं। अन्य उपकारक सामग्री की भी किसी तरह उपेक्षा नहीं की गई; शिलालेखों, शासनपत्रों, सिक्कों और अन्य ऐसे ही अभिलेखों के संशोधन में वह अथक परिश्रम करता रहता था, जो इतिहास के अकाटय प्रमाण-स्वरूप माने जाते हैं। इन्हीं संशोधनों के प्रसंग में (अपने घर लौटते समय) उसने सौराष्ट्र के समुद्रतट पर सोमनाथ पट्टण में देवनागरी अक्षरों में लिखा एक शिलालेख खोज निकाला जिससे नहरवाला के बलहरा राजाओं का काल-निर्णय ही नहीं हो गया वरन्
' इसी पुस्तक में अन्यत्र जैनों के साहित्यिक ग्रन्थ-भण्डारों का वर्णन पढ़िए । • राठौड़ वंश के लेख 'इतिहास' भा० २ में दिए गए हैं। इनमें से एक 'रासा राव रतन' है जिसमें रतलाम के राव रतन के पीरतापूर्ण कार्यों का अमर काव्य के रूप में वर्णन किया गया है।
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