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________________ ग्रन्थकर्ता-विषयक संस्मरण [ २६ अच्छा नहीं लगा कि इसने करीब करोब उस उपकारी की जान ही ले ली थी जो हमको जीवन देने आया था।" ये हैं वे लोग, जिनके बारे में कहा जाता है कि इनमें 'कृतज्ञ-भाव नहीं है।' मेवाड़ की प्राचीन राजधानी चित्तौड़ को देख कर (जिसके स्थापत्य के नमूने भी उसने दिए हैं) वह १८२२ ई० के मार्च मास में उदयपुर लौट गया। ___ अब उसे भारत में रहते बाईस वर्ष हो गये थे जिनमें से अट्ठारह साल उसने पश्चिमी राजपूतों में बिताए थे; पिछले पाँच वर्ष वह गवर्नर-जनरल के एजेण्ट की हैसियत से रहा । उसके सार्वजनिक-हित-कार्य और विस्तृत भौगोलिक एवं प्रांकिक संशोधन ही-जो एक साधारण-से मस्तिष्क को व्यस्त रखने के लिए पर्याप्त थे- ऐसे विषय नहीं थे, जिनके अध्ययन में वह डूबा रहता था वरन् उसने अपने पद की सुविधाओं और देशी राजाओं के साथ सम्बन्धों का उपयोग राजपूतों के राजनीतिक-इतिहास, विज्ञान और साहित्य के मर्म तक पहुँचने में भी किया; और इसके परिणाम में हिन्दू-इतिहास की वह मौलिक सामग्री प्रभूत मात्रा में प्रकाश में आई, जो अति प्राचीन काल से सम्बद्ध है और उन कल्पनाधारित मान्यताओं को प्रामाणिक सिद्ध करती है जिनको अच्छे-अच्छे पूर्वीय विद्वानों ने भी सहज ही में ग्रहण कर लिया था। कर्नल टॉड के सफल संशोधनों से पूर्व इसके अतिरिक्त कोई सिद्धान्त प्रायः स्वीकार नहीं किया जाता था कि हिन्दुओं के पास उनका कोई स्थानीय इतिहास भी है; यद्यपि रवाभाविक और तर्कसम्मत प्रश्न खड़ा होता है कि "यदि हिन्दुओं के पास कोई इतिहास नहीं था तो , इतिहास, २, पृ० ५७४-- इंगलैण्ड में कर्नल टॉड ने अपने एक मित्र के नाम पत्र लिखा और उसमें इस घटना का उल्लेख किया। इससे पता चलता है कि वह इस कृतज्ञतापूर्ण सम्मान से कितना प्रभावित हुआ था। "....."मैं जीवन-सिद्धान्त पर दृढ़ विश्वास करता था। अब तो मुझे यह स्वप्न सा प्रतीत होता है। परन्तु, एक सप्ताह पूर्व, में अपने हाथी पर से टकरा कर उस समय गिर गया जब मैं मेघावतों के सरदार को उसके सत्ताईस गांवों पर अधिकार लौटाने जा रहा था--ये गांव पैतालीस वर्षों से उसके अधिकार से निकल गए थे और मैंने इनको मरहठों की दाढ़ में से निकाला था। वह पशु खाई पर बने हुए लकड़ी के पुल पर दौड़ा ओर एक दरवाजे की मेहराब, जो बहुत नीची थी उससे टकरा कर मैं दूर जा गिरा। यही एक पाश्चर्य समझो कि मैं चकनाचूर नहीं हुआ। उसी रात को मेधावतों का वह विजय-द्वार तोड़ कर समतल कर विया गया । ये वे लोग हैं, जिनको प्रकृतज्ञ कहा जाता है । मेरा कोई अंग भी भंग हो जाता तो कोई ताज्जुब नहीं था, परन्तु में कुछ खरौंच लग कर ही बच गया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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