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________________ २६ ] पश्चिमी भारत की यात्रा 9 परन्तु, उन्होंने कोई ऐसा काम नहीं किया कि जिससे किसी को भी कार्य - पृथक् या अप्रसन्न करना पड़ा हो । दूसरे दरबार में उसने, रानी की प्रार्थनानुसार, राज्य के सरदारों को अपनी-अपनी जागीरों पर लौटने से पहले उनका कर्त्तव्य समझाया और रियासत के पुराने कायदे-कानूनों के पालन की आवश्यकता पर बल दिया । यद्यपि राखी का त्यौहार भी नहीं प्राया था परन्तु बालक राजा की माता ने अपने कुलपुरोहित के हाथ कप्तान टॉड के लिए राखी भेजी और उसको अपना भाई बनाया; इससे वह संरक्षित बालक उसका भानजा हुआ । राणा की कुमारी बहिन और अन्य जागीरदार सरदारों की महिलाओं के अतिरिक्त उसने दो और रानियों से भी राखी स्वीकार की थी और वह उनका 'राखी बंध भाई' बन गया था; वह कहता है कि यही वह सम्पूर्ण खजाना था जो वह साथ लाया था । इसके पश्चात् उसने राजमाता से प्रत्यक्ष बात करने का भी सम्मान प्राप्त किया ( उनके बीच में एक पर्दा लटका दिया गया था) और राजमाता ने रियासत के मामलों व अपने ' लालजी " की बहबूदी के बारे में बातें कहीं। बूंदी में एक पखवाड़ा बिताने के बाद वहाँ के शासन को ठीक तरह से जमा कर उसने विदा ली और वहाँ के बोहरा या मुख्यमन्त्री को एक ऐसे बुद्धिमत्तापूर्ण रूपक के द्वारा समझाया जो किसी हिन्दू को तुरन्त ही बोधगम्य हो सकता है कि यदि राजकाज न्याय के सिद्धान्तों पर चलाया जायगा तो "झील के पानी पर एक दिन फिर कमल खिल जायगा ।" कप्तान टॉड कोटा के रास्ते होकर लौटा, जहाँ हाडोती की पड़ोसी रियासत बूंदी जैसी सुख शान्ति का नितान्त प्रभाव था । अतः यहाँ पर नये सिरे से श्रम और उलझनों का सामना करना पड़ा। वह कहता है कि अगस्त, सितम्बर और अक्टूबर, १८२१ ई० के तीन महीने बड़ी परेशानी में बीते, "गृह-युद्ध, मित्रों और पारिवारिक जनों की मृत्यु, हैजा और हम सभी लोगों का निरन्तर ज्वराक्रान्त होना तथा थकान और चिन्ताग्रस्त रहना ।" परन्तु ये छुट-पुट भौतिक अनिष्ट उन नैतिक बुराइयों के सामने कुछ भी नहीं थे जिनका प्रतोकार करना " राखी का त्योहार उन कतिपय सुअवसरों में सं है जब कि राजस्थान के वीरों शोर मणियों में एक बहुत ही कोमल सम्बन्ध स्थापित हो जाता है। राखी भेज कर राजपूत महिला अपने हितेषी व्यक्ति को 'धर्म-भाई' होने का गौरव प्रदान करती है। कोई भी लोकापवाद उस महिला और उसके संरक्षक 'राखी बंध भाई' के बीच में किसी अन्य सम्बन्ध की कल्पना नहीं कर सकता । -- देखिए - 'इतिहास' भा. १; पृ. ३१२, ५८१ । * राजमाताएं अपने पुत्रों को प्यार से 'लालजी' (संभवत: 'लाड़लाजी' का संक्षिप्त रूप ) कहकर बोलती हैं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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