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________________ २४ ] .. पश्चिमी भारत की यात्रा कारण भी उसका ध्यान काम से नहीं हटा। चारपाई पर बेहोश मुर्दे-सा लेटा हुअा, बाँई तरफ़ कोई तीन कौड़ी (६०) जोकें लटकाए हुए वह जिले के भोमियों और पटेलों की मौखिक रिपोर्ट लिखता रहता, जो उसके तम्बू में भरे रहते और उनकी टोलियों की टोलियाँ बाहर भी बैठी रहती थीं। वह अक्टूबर, १८२० ई.' में मेवाड़ लौटा; परन्तु, अब प्रकृति उसे ऐसी भाषा में चेतावनी देने लगी थी कि उसका और कोई अर्थ नहीं लगाया जा सकता था। उसका हृष्टपुष्ट शरीर सूख कर काँटा हो गया था और एजेन्सी के चिकित्सा अधिकारी डॉक्टर डंकन ने स्पष्ट कह दिया था कि यदि वह छ: महीने तक देहात में और ठहरा रहेगा तो अवश्य मर जायगा । १८२१ ई० के वसंत में उसने देश जाने का विचार किया और वर्षा बन्द होते ही तैयारियां करने की सोची, परन्तु जुलाई में ही उसे बंदी से आवश्यक पत्र मिला जिसमें उसके सम्मान्य मित्र रावराजा को हैजा के कारण आकस्मिक मृत्यु के समाचार थे । रावराजा ने, जिससे वह कुछ ही मास पूर्व विदा होकर आया था, अपने अन्तिम क्षणों में कर्नल टॉड को अपने अल्पवयस्क पुत्र का संरक्षक नियुक्त किया था और उसकी तथा बूंदी की सुरक्षा का भार भी उसी के कंधों पर डाला था । मुसाहब के औपचारिक पत्र के साथ नाबालिग राजकुमार की माता राणी की ओर से भी एक पत्र था (या उसके नाम कुछ पंक्तियाँ लिखी थीं) जिस में मरणासन्न राजा की इच्छा की सम्पुष्टि करते हुए उसे नाबालिगी की कठिनाइयों और उन शरारत-भरे तत्वों का स्मरण कराया गया था जिनसे वे लोग घिरे हुए थे। २४ जुलाई, १८२१ ई० को भर बरसात में ही वह हाड़ौती के लिए रवाना हुआ। मार्ग में भीलवाड़ा होकर जाते समय वहाँ पर उसका उत्साहपूर्ण स्वागत हुआ। प्रमुख पंच-महाजनों सहित सभी नगर निवासी कलश लिए हुए आग-बागे चलती हुई युवतियों के पीछे एक मील तक उसको अगवानी करने आए और । इसी वर्ष जब सिन्धिया से कलह हुना तो उसने लार्ड हेस्टिग्स के पास एक योजना लिख कर भेजी जिसमें मरुस्थल में होकर सेना भेजने का सुझाव था। उस समय उत्तरी सिन्ध के गवर्नर मीर सोहराब से भी उसका पत्र व्यवहार हुआ था। २ हजे की महामारी को इस क्षेत्र में मरी' या मत्यु कहते हैं। यह बीमारी यहां १८१७ ई० की लड़ाई के प्रारम्भ में चाल हुई थी और उन दिनों (१८२१ ई०) में उन क्षेत्रों को बरबाद कर रही थी। राजपूत राजाओं के पुराने कागज़ पत्रों के आधार पर क. टॉड ने शोध करके बताया है कि यह बीमारी इस देश के लिए कोई नई चीज़ नहीं है । कोई दो सौ वर्ष पहले भी इसने हिन्दुस्तान को तबाह कर दिया था। १६६१ ई० में इसने मेवाड का सफाया कर दिया था। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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