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अन्यकर्ता-विषयक संस्मरण
[ २१ वर्ग में बहुत ही सौहार्द और पादर के साथ लिया जाता है; उनके लिए यह नाम बहुत ही सम्मान की वस्तु है और प्रायः इन गरीबों को अकृतज्ञता के दोष से मुक्ति दिलाने में पर्याप्त सिद्ध होता है । डाबला और आगे के मुकामों में वहाँ के 'कोटवाल' आदि हमें निरन्तर 'टॉड साहिब' के बारे में पूछते रहे कि इंगलैण्ड लौटने पर उनका स्वास्थ्य ठीक हुआ या नहीं और अब उनसे फिर मिलना हो सकेगा या नहीं, इत्यादि । जब उनको कहा जाता कि ऐसी सम्भावनाएं अब नहीं हैं तो वे बहुत अफसोस प्रकट करते और कहते कि उनके आने से पहले देश में शान्ति का नाम भी नहीं था और सभी मालदार व गरीब लोग, डाकुओं और पिंडारियों के सिवाय, उनसे समान रूप से प्रेम करते थे। डॉ. स्मिथ ने मुझसे कहा कि वह वास्तव में इस देश के लोगों से प्रेम करता था और इनकी भाषा व रीति-रिवाजों को स्वाभाविक रूप में जान गया था। भीलवाड़ा में भी प्रत्येक मनुष्य कप्तान टॉड की भूरि-भूरि प्रशंसा कर रहा था । इस जगह को जमशेद खाँ ने तबाह कर दिया था और यहाँ के सभी निवासी गाँव छोड़-छोड़ कर चले गए थे, बाद में कप्तान टॉड ने राणा को इस बात के लिए प्रेरित किया कि उन लोगों को वापस बसने व विदेशी व्यापारियों को यहाँ कायम होने के लिए प्रोत्साहित किया जाय । उसने स्वयं उनके लिए नियम बना कर लेखबद्ध किए; कुछ वर्षों के लिए उनको करों से मुक्त कराया और विविध प्रकार के अंग्रेजी माल के नमूने उनके पास भेजे कि वे उसके मुकाबिले का माल पैदा करें। उनके नगर को सुन्दर बनाने के लिए उसने उदारतापूर्वक धन भी दिया । संक्षेप में, जैसा कि मुझ से मिलने आए एक महाजन ने कहा था, 'इसको टॉड-गंज कहना चाहिए, परन्तु इसकी अावश्यकता नहीं है क्योंकि हम उसे कभी नहीं भूलेंगे।' उस आदमी की ऐसी प्रशंसा, जिससे अब मिलने या भविष्य में लाभ प्राप्त होने की कोई प्राशा नहीं थी, वास्तव में, एक विशुद्ध मूल्यवान् वस्तु है ।' सच तो
' “भारत के उत्तरी प्रान्तों की यात्रा का विवरण, १७२४-२५ ई." वॉल्यूम २, पृ. ४२ । विशॉप ने प्रागे कहा है "यह उसका दुर्भाग्य था कि देशी राजाओं का अत्यधिक पक्ष लेने के कारण कलकत्ता की सरकार ने उस पर भ्रष्टाचार का सन्देह किया और परिणामतः उसके अधिकारों को सीमित करके उसके साथ दूसरे अधिकारी लगा दिये गये; अन्त में, वह तंग प्रा गया और उसने अपने पद से त्याग-पत्र दे दिया। मुझे विश्वास है कि अब उन्हें संतोष हो गया है कि उनके सभी सन्देह निराधार थे।" यदि यह सच है तो बंगाल सरकार पर एक महान् पारोप है कि उन्होंने सन्देह के लिए तनिक भी कारण न होते हुए ऐसी कार्यवाही की । यह स्पष्ट है कि कर्नल टॉड के देशी नौकरों तक की रिश्वत लेने की कोई शिकायत नहीं है जैसे कि विशॉप ने एक दूसरे अंग्रेज सर प्रॉक्टर लोनी के नौकरों के विषय में लिखा है कि उसके मुंशी ने उसका नाम दिल्ली के गरीब वृद्ध बावशाह के प्रमले
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