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________________ २० ] पश्चिमी भारत की यात्रा में अपना कारोबार जमाने लगे थे । बाहरी व्यापार पर से पाबन्दी हटा ली गई, एक स्थान से दूसरे स्थान पर माल ले जाने का कर लेना बन्द कर दिया गया और सरहदी चुंगी कम कर दी गई-परिणाम यह हुआ कि चुंगी और कर में इतनी कमी कर देने पर भी कुछ ही वर्षों में इस मद में अब तक हुई आमदनी से इतनी अधिक रकम प्राप्त हुई कि कभी अन्दाज भी नहीं किया गया था। इससे मन्त्रियों को बड़ा आश्चर्य हुआ क्योंकि इस नतीजे से उनके संकुचित हिसाब-किताब की कोई अनुरूपता ही नहीं थी। भीलवाड़ा, जो पहले ऊजड़ हो गया था, १८२२ ई० में ३००० घरों का शहर हो गया, वहाँ एक नया बाजार बन गया जहाँ बनिए, साहूकार और अन्य नागरिक भी बस गए थे। उदयपुर के घरों की संख्या, जो १८१८ ई० में ३५०० थी, १८२२ ई० में बढ़ कर १०,००० हो गई; राज्यकोष में राजस्व की आय १८१८ ई० में ४०,००० रु. (लगभग ४,००० पौण्ड) थी, वही १८२१ ई० में दस लाख रुपयों (लगभग १ लाख पौण्ड) से ऊपर पहुँच चुकी थी। यदि कर्नल टॉड के अधिकार में दी गई इस रियासत और साथ ही दूसरी रियासतों में उनके द्वारा निष्पन्न सुधारों के परिणामभूत लाभों का सूक्ष्म विवेचन करने लगें तो इस संस्मरण का परिमाण अनुपयुक्त रूप से बढ़ जायगा। उन्होंने इन सब का उल्लेख अपने, महान् ग्रन्थ में किया है और आत्मश्लाघा (जिस दुर्बलता से, सामान्य रूप में, कोई भी मनुष्य उनसे अधिक निर्मुक्त नहीं है)' के आरोप की तनिक भी परवाह नहीं की है । ऐसे दोषारोपण प्रायः वे लोग करते हैं जिनको दिखावटी मनुष्यों की प्रात्म-संस्तुति और उदार एवं उच्चप्रकृति मनुष्यों के उस आत्म-सन्तोष में अन्तर जानने का तमोज नहीं है जो पवित्रतम प्रयोजनों और अनेक कष्टप्रद बलिदानों के फल-स्वरूप मानव-जाति के विपुल समुदायों को स्थायी लाभ पहुंचाने की आत्मचेतना से उद्भूत होता है। ___ स्वयं जनता की भावनाएं ही उसकी सेवाओं की बहुमूल्यता के प्रति असंदिग्ध रूप में साक्षीभूत हैं; और ये भावनाएं स्वर्गीय बिशॉप हैबर के माध्यम से सर्व-साधारण में उस समय मुखरित हो उठी थीं, जब कर्नल टॉड के राजपूताना छोड़ने के दो वर्ष पश्चात वे इधर आए थे। महान पादरी का कहना है "बृटिश सरकार से सम्बद्ध होने के पश्चात् मेवाड़ के सभी जिले बहुत समय तक कप्तान टॉड के शासन में रहे थे, जिसका नाम यहाँ के सम्पूर्ण उच्च एवं मध्यम . उनके अन्यतम मित्र का कहना है कि "अपनी मान्यताओं का निराकरण क० टॉड से बढ़कर किसी ने नहीं किया।" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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