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ग्रन्थकर्ता विषयक संस्मरण
[ १६ आदमियों के खोज तक ला-पता हो चुके थे। "बबूल और घने नरसल के पेड़, मुख्य रास्तों पर उग आए थे जिनमें चीते और बाघ घर किए हुए थे, और प्रत्येक ऊँची जमीन पर खण्डहरों के ढेर पाए जाते थे । राजपूताना के मुख्य व्यापारिक नगर भीलवाड़ा में, जहाँ दस वर्ष पहले छः हजार परिवारों की बस्ती थी, अब कोई जीवन का चिह्न शेष नहीं था; सड़कें सूनी पड़ी थीं; कोई जीवित प्राणी नहीं दिखाई दिया सिवाय एक कुत्ते के, जो हड़बड़ा कर अपने निभत स्थान, एक मन्दिर में से निकल कर भागा, जिस पवित्र स्थान के दर्शन करने के लिए मनुष्य की आँखें अनभ्यस्त हो चुकी थीं। " युद्ध, अकाल और जन-संहार के सम्मिलित परिणाम-स्वरूप विनाश का यह एक चित्र है कि जिसको किसी प्रतिभाशाली कवि की कल्पना भी शायद ही बराबर व्यक्त कर सके । ___ कर्नल टॉड ने स्वलिखित 'मेवाड़ का इतिहास' में सन् १८१८ में देश की शोचनीय अवस्था का चित्र खींचने के बाद लिखा है कि "ऐसी अस्त-व्यस्त अवस्था थी जिसमें से व्यवस्था उत्पन्न करनी थी । समृद्धि के तत्त्व यद्यपि बिखर चुके थे परन्तु निश्शेष नहीं हुए थे और राष्ट्रीय मानस में गहरी जमी हुई प्रतीत गौरव] की याद उनके अस्तित्व में नैतिक एवं भौतिक जीवन को प्रोत्साहित करने के लिए हमें] उपलब्ध हुई थी। इनको आगे लाने के लिए केवल नैतिक हस्तक्षेप की ही माँग हुई, बाकी सब बातें छोड़ दी गई। अराजक बाहरवटिया और जंगली भील भी अदृष्टपूर्व शक्ति के माध्यम से भयभीत हो गए।" इस नैतिक पुनरुद्धार के लिए प्रतिनिध को जो साधन अपनाने थे वही काम में लाए गए। सज्जन होते हुए भी राणाजी दुर्बल-चित्त, अस्थिरमति और स्त्रियों के प्रभाव से दबे हुए थे। मंत्रियों में 'तीन तो ऐसे थे जिनमें न समझ थी, न अधिकार था और न ईमानदारी ही थी' परन्तु, बृटिश प्रतिनिधि के दृढ़, सान्स्वनाप्रद एवं चातुर्यपूर्ण प्रयोगों ने थोड़े ही समय में परिस्थिति बदल दी। उसकी मध्यस्थता से प्रेरित होकर दुराग्रही सरदार अपना असंतोष भूल कर राजधानी में आने लगे थे; १८१८ ई० में राणाजी की सवारी में पचास घोड़े भी नहीं थे, और अब उनका प्राधिपत्य स्वीकार कर लेने पर अधीनस्थ जागीरदारों से रिसाला भरा पड़ा था; जो लोग गाँव छोड़ कर चले गए थे वे पुनः अपनी 'बपोत' अर्थात् बाप-दादों की भूमि में बसा दिए गये थे, और व्यापार भी पुनरुज्जीवित होकर बढ़ती करने लगा था। सन्धि सम्पन्न होने के बाद आठ मास के अन्दर-अन्दर तीन सौ से भी अधिक गाँव और कसबे फिर बस गए और जो भूमि बरसों से अछूती पड़ी थी वह अब हल चला कर 'तोड़ ली गई थी। बृटिश प्रतिनिधि को योजनानों से प्राश्वस्त होकर व्यापारी और साहूकार बाहर से प्रा-पाकर देश के प्रत्येक नगर
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