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________________ ग्रन्थका-विषयक संस्मरण [ १७ उत्तर में बढ़ाव रुक गया तो बम्बई सरकार ने उसकी (पेशवा की सेना को जनरल सर डब्ल्यू ० ग्राण्ट केर के द्वारा आगे बढ़ने से रुकवा दिया, जिनके अधीन पिण्डारियों के विरुद्ध की जा रही कार्यवाही की श्रृंखला में एक विशेष मोर्चा दिया हुआ था। इस अवसर पर, जनरल सर जॉन मालकम ने दक्षिण की सेना के एक दुर्बल विभाग के साथ असहाय अवस्था में नदी पार कर ली थी, और जनरल सर टी. हिसलॉप की प्रवृत्ति से तो युद्ध का नकशा ही बदल गया था कि जिससे पिण्डारियों के साथ लड़ाई ढीली पड़ गई थी। यह निश्चय करके कि मुख्य सेनाध्यक्ष ( Commander-in-Chief ) पूर्व-निश्चित योजना में, पेशवा के विद्रोह के कारण, कोई हेर-फेर करना न चाहेंगे- इसलिए सहायता के प्रभाव में सर जॉन मालकम के सेना-विभाग के परिणाम की आशंका से डर कर मैंने अपनी मुख्तारी से जनरल सर डब्ल्यू० ग्राण्ट केर के पास सब बातें बताते हुए आवश्यक सूचना भेज दी और मैंने यह भी विश्वास प्रकट किया कि यदि वे तेजी के साथ मेवाड़ में प्रागे बढ़ कर उज्जैन के पास स्थिति ग्रहण कर लेंगे तो लॉर्ड हेस्टिग्स् को प्रसन्नता होगी। यह एक विशुद्ध सैनिक प्रश्न था । जनरल सर डब्ल्यू ग्राण्ट केर मुझ से तीन सौ पचास मील की दूरी पर थे; परन्तु, शत्रुओं की दाढ़ में होकर भी, मैंने उनके पड़ाव के साथ नियमित और शीघ्रगामी संवादपरिवहन की व्यवस्था की । उक्त सूचना की नकल मैंने जरूरी तरीके से माक्विस् हेस्टिग्म् के पास भी भेजी ; मैंने पुनः एक बार स्थिति की प्रतिकूलता के विषय में निवेदन किया और ऐसा करने के लिए मुझे उनसे एक बार फिर प्रशंसा एवं धन्यवाद का संवाद प्राप्त हुना। जनरल सर टी. ब्राउन ने भी मेरे निर्देशानुसार सैन्य-संचालन हो नहीं किया वरन् मेरे कुछ मुख्य मार्ग-दर्शकों को भी अभियान में साथ रखा जिसका परिणाम यह हुआ कि रोशनबेग का गिरोह नष्ट ही हो गया।" अब, राजपूताना विनाशकों के हाथ से मुक्त हो गया था; कोई लुटेराप्रणाली पुनः चालू न हो जाय तथा भारत के सुदृढ़ सीमान्त और हमारे प्रदेशों के बीच में एक व्यवधान-सा खड़ा न हो जाय इसलिए अब इस प्रान्त के एवं बृटिश-भारत के हित में यह आवश्यक हो गया था कि इन नवसंस्थापित रियासतों का एक महान् संघ बन जाय । तदनुसार इन सब को बुटिश के साथ संरक्षणसन्धि के लिए आमन्त्रित किया गया। एक मात्र जयपुर को छोड़ कर, जो कुछ महीनों तक इधर-उधर करता रहा, सभी ने उत्सुकता-पूर्वक इस आमन्त्रण को स्वीकार कर लिया और कुछ ही सप्ताहों में समस्त राजपूताना एक समानरूप सन्धि के अनुसार ब्रिटेन का मित्र बन गया। सन्धि के अन्तर्गत उनको बाहरी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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