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पश्चिमी भारत की यात्रा
भण्डारों पर शत्रु के आक्रमण का सामना करना पड़ा-यह हालत तब तक चली जब तक कि महिदपुर वाली सैनिक कार्यवाही न की गई।
__ "इसी कार्यवाही में से एक और कूटनीतिक चाल निकली जिसमें भी सैनिक चातुरी का पुट मिला हुआ था। कोटा का राज-प्रतिनिधि हमारे और अपने पुराने मित्रों अर्थात् भारत के समस्त सैन्य-संघ के बीच में दोलायमान हो रहा था। उसको होल्कर के राज्य से अलग करके मैंने अपने वश में करने का निश्चय किया। मैं यह भी पहले से जानता था कि इसके तुरन्त बाद ही उस शक्ति से हमारा विरोध होना अनिवार्य हो जायगा-अतः मैंने लॉर्ड हैस्टिग्स् को सिफारिश की कि वे कोटा के राज-प्रतिनिधि को उन चार उपजाऊ परगनों का स्वतंत्र स्वामी मान लेने का वचन दे दें जो उसको होल्कर सरकार की ओर से लगान पर मिले हुए थे। मेरे इस सुझाव की बड़ी प्रशंसा हुई और मुझे इस बात की पूरी छूट मिल गई कि मैं जब चाह और जिस तरीके से चाहँ यह प्रस्ताव कर सकता हूँ; मुझे यह भी अधिकार मिल गया कि मैं इसकी मञ्जूरी अपनी मोहर लगा कर दे सकता हूँ जिसकी बाद में सम्पुष्टि कर दी जावेगी। मुझे जिन परिणामों को आशंका थी वही सब सामने आए; तात्कालिक लाभ ने भविष्य की सभी प्राशङ्कानों को निरस्त कर दिया; और, मैंने वह काम कर डाला जिससे, उसने कहा, उसके पुराने मित्रों में हमेशा के लिए उसका मुंह काला हो गया, वही कार्य राज-प्रतिनिधि के विश्वास की कसौटी था अर्थात् महान् पिण्डारी नेताओं की सभी स्त्रियों और बच्चों को गिरफ्तार करके उसने मेरे सुपूर्द कर दिया, ये सब उसकी गढ़ी गागरोन (Gograun) के पास छुपे हुए थे और मैंने इनका पता लगा लिया था। इसका असर जादू के समान हुआ; उसी घड़ी से उनकी नैतिक शक्ति बिखर गई और उनके सरदार ताबे हो कर समस्त षड्यन्त्रों से अलग हो गए। इस कार्यवाही के बाद वह राज-प्रतिनिधि हमेशा के लिए पिण्डारियों से पृथक् हो गया; साथ ही, उन चारों परगनों कीमंजूरी और होल्कर के दूसरे जिलों के साथ उन पर सैनिक अधिकार प्राप्त होते ही उस दरबार की राजनीति और समस्त मरहठा जाति से उसके सम्बन्ध सदा के लिए विच्छिन्न हो गए ।
"इन प्रयोगों में से प्रत्येक अवसर पर, जो संघर्ष के अन्तिम और महत्वपूर्ण क्षणों में किए जा रहे थे, कुटनीति के साथ सैनिक कार्यवाही का सम्मिश्रण होना इतना अनिवार्य था कि इन दोनों विषयों को पृथक्-पृथक् रखा ही नहीं जा सकता था; ऐसा स्पष्ट लगता था कि एक के बिना दूसरा ध्यान में नहीं आता था तो दूसरा पहले के बिना अच्छी तरह क्रियान्वित ही नहीं हो सकता था। ___"दूसरे प्रयोग और दायित्व जो मुझे निभाने पड़े वे निस्सन्देह सैनिक प्रकार के थे। पेशवा द्वारा सन्धि भंग करने पर जब सर टी. हिसलॉप का नर्मदा के
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