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पश्चिमी भारत की यात्रा रिमेय साधनोंको अपने हित में संयोजित करने में सफल हो सका तो यह मेरे एतद्देशीय सैनिक-ज्ञान का ही फल था कि जिससे यह कूटनीतिक सिद्धि पूर्णता को प्राप्त कर सकी। यही एक ऐसा राजा था जो मध्य-भारत में सब से अधिक बुद्धिमान् और शक्तिशाली था और जिसका प्रदेश हमारी प्रवृत्तियों के बीचों-बीच आया हुआ था तथा जहाँ पर सभी प्रकार के साधन उपलब्ध थे; परन्तु, लॉर्ड लेक के युद्धों में हमारी सहायता करने के कारण जो क्षति उसको पहुँचो थी तथा लार्ड कार्नवालिस के समय में हमारी नीति के अनुसार होल्कर के क्रोध का पात्र बनने के लिए हमारे द्वारा उसको अकेला छोड़ देने की घटनाएं भी उसे याद थों । यह मान लेना चाहिए कि ऐसी-ऐसी स्मतियों पर काबू पाने के लिए विशेष प्रकार की चातुरी आवश्यक थी; फिर भी, वहाँ पहुँचने के बाद पांच ही दिन में मैंने उन पर काबू ही नहीं पा लिया वरन् अपने सभी सैनिक साधनों को मेरे ही आधीन रख देने को भी उसको राजी कर लिया ।
"उनका पहला उपयोग मेंने सर जे० मालकम (जिसने उस समय नर्मदा को पार किया ही था और हमारे शत्रुओं के बीचों-बीच घिर गया था, जिनमें यदि थोड़ी सी भी उद्यमता होती तो उसकी कमजोर सेना को नष्ट कर देते) की सहायतार्थ 'खासा' (the Royals) रेजीमेण्ट भेज कर किया; इस रेजीमेण्ट में एक हजार जवान, चार तोपें और तीन सौ बढ़िया घोड़ों का एक दल था। ये लोग सर जॉन के साथ संघर्ष के अन्त तक रहे और शत्रु के एक दुर्ग को घेर कर अधिकृत कर लेने में उन्होंने परम प्रसिद्धि प्राप्त की। दूसरे, मैंने दलों को विभिन्न मार्गों पर विभाजित कर दिया जिनमें से कुछ का शत्रु से सीधा वास्ता भी पड़ा। तीसरे, जब होल्कर से दुश्मनी शुरु हुई तो बूंदो के पहाड़ों से लेकर महिदपुर के रणस्थल तक होल्कर के प्रत्येक जिले पर एक ही सप्ताह के अल्प समय में सैनिक अधिकार कर लिया। इस सेना के प्रत्येक उप-विभाग के साथ मैंने एक-एक अंग्रेज यूनियन (सैनिक टुकड़ी) भी लगा दी जो थोड़े ही समय में प्रत्येक प्राकार-युक्त नगर और थानों पर जम गए और उन्होंने वहाँ से (घोषणा द्वारा) बृटिश सरकार के प्रति वफादारी प्राप्त कर ली। एतद्देशीय सामरिक अवस्था के ज्ञान और उसके सम्यक् प्रयोग के बिना किसी भी दशा में ऐसे परिणामों को प्राप्त नहीं किया जा सकता था।
"ये सभी कर्तव्य मुख्यतः सैनिक-कर्तव्य थे, साथ ही इनमें कूटनीतिक पूट भी मिला रहता था। मेरे बड़े से बड़े कूटनीतिक कार्य के लिए भी सैनिकीय निर्णय लेना आवश्यक होता था और उसकी शुद्धता भी सैनिक परिणामों के आधार पर ही जाँची जा सकती थी। उदाहरण के लिए-शत्रुता प्रारम्भ होने से पहले
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