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परिशिष्ट
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है; इस देव की महिमा सर्वविदित है, वह परमपवित्र और कल्मषरहित है । ऐसे देव शिव हैं, जिनकी स्तुति सुनने से मन पवित्र हो जाता है। वह अपने भक्तों को सभी शुभ वस्तुएं और स्वर्ग में प्रवेश प्रदान करते हैं। रत्न के समान उनका स्थान केन्द्र में है। वह अपनी सहज कृपा से कलियुग में जन्मे हुए प्राणियों के अपराध क्षमा कर देते हैं। उनको महिमा और शक्ति समस्त संसार में व्याप्त है । उनकी सदा जय हो ! सर्प जिनके आभूषण हैं, वह विश्व के स्वामी हैं, तीनों लोकों में वह ही दया के निधान हैं ।
पत्तन का वर्णन यह नगर देव का पत्तन कहलाता है, जहां शिवजी की कृपा से ऊँचे-ऊँचे प्रासाद, विशाल मन्दिर, अनेक उद्यान और आनन्दमयी कुजें हैं।
श्रीधर का वर्णन जिस प्रकार समुद्र अपनी लहरों से पाप के पहाड़ों को भी धो डालता है उसी प्रकार श्रीधर अपनी सेना के बल पर सोमनाथपुरी में राज्य करता है। इस नगरी में श्रीकृष्ण का एक सुन्दर मन्दिर हैं; वहाँ उसका एक परम बुद्धिमान् मंत्री भी रहता है, जो दुष्कमियों और पापियों को बाहर निकाल देता है। इस श्रीधर ने [वेदों के ] कितने ही पारायण कराए हैं, यज्ञ सम्पन्न किए हैं, धर्मार्थ कितने ही मन्दिरों का निर्माण कराया है और उन मन्दिरों को उद्यानों, कुञ्जों
और क्यारियों से सुशोभित किया है, शोभा और प्रकाश में ये मन्दिर सुर्वण-सुमेरु की श्रेणियों की समता करते हैं; इनमें सोमनाथ का मन्दिर बहत विचित्र है; यहां विविध भांति के कलश हैं, जो बहुत प्रकार की पताकायों से युक्त हैं, अत: यह स्थान पवित्र पर्वत [ देवगिरि ] के समान लगता है।
मन्दिर के महन्त का वर्णन यहां का महन्त मानवों में श्रेष्ठ, सद्गुणों का आगार, और परम दयावान महेश्वर है। वह निरन्तर शिवपूजन में व्यस्त, महन्तोचित सभी मूल्यवान सदगणगणों से युक्त, पवित्र पूजा के विधि-विधान और सतत यज्ञों का अनुष्ठाता है । उसका मन अत्यन्त निर्मल और निरन्तर हरिभक्ति में लीन रहने वाला है ; वह विष्णु की भी पूजा करता है, जिसकी भक्ति से मनवाञ्छित फल, अमरत्व का शाश्वत आनन्द, ऐहिक ऐषणाओं और मानवीय सुखों को प्राप्ति होती है । भक्ति से उसे उन सभी पदार्थों की प्राप्ति हो जायगी जिनकी वह इच्छा करेगा; यह भक्ति शुभ है और इससे सभी प्रकार का आनन्द प्राप्त होता है। इन श्रीसोमनाथ की कृपा से मनुष्यों को सौभाग्य की प्राप्ति होती है। वह सोम (चन्द्रमा) के नाथ
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