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________________ ५३२ ] पश्चिमी भारत की यात्रा (स्वामी) हैं। श्रीधर महाराज उनके कुल में विराजमान हैं, यह राजा इन देव के पुजारियों का बहुत मान करता है । राजा श्रीसोमनाथ के इस मन्दिर का भक्ति-पूर्वक सम्मान करता है; वह शिव को महिमा को नमस्कार करता है। इस मन्दिर में सन्तों का निवास है; यहां लक्ष्मी विलास करती है और शिव के चरणों का पूजन करने से समस्त दुरितों का क्षय होता है । इस मन्दिर का दर्शन करने से दुष्कर्मों का लेश भी लुप्त हो जाता है, दुःख और रोग का भी नाश होता है। - श्री विक्रमादित्य राजा के संवत् १२७२ (१२१५ ई०) में वैशाख वदु ४ थी (शुक्रवासरे) को इस प्रतिमा की प्रतिष्ठा हुई।' ' कर्नल टॉड के बाद इस लेख को मिस्टर पोस्टन्स् ने 'बॉम्बे ब्रांच प्राफ दी रायल एशियाटिक सोसाइटी' के जर्नल वॉल्यूम २ के पृष्ठ १६ पर प्रकाशित कराया था। इन दोनों ही लेखकों का कहना है कि यह लेख वेरावल के पास देवपट्टण अथवा सोमनाथपाटण में किसी काजी के घर के समीप खम्भे में जड़ा हुआ था। अब वह शिला, जिस पर यह उत्कीर्ण है, शहर के बड़े दरवाजे की दाहिनी बाजू किले की दीवार में जड़ी हुई है । कर्नल टॉड और मिस्टर पोस्टन्स ने वह नकल प्राप्त की थी जो मिस्टर वाष ने एक जैन प्राचार्य की सहायता से रामदत कृष्णदत्त पुराणी के समक्ष तैयार की थी और उसका अनुवाद भी किया था। मिस्टर वाघ का अनुवाद अपहिलवाड़ा के चौलुक्य-राजाओं के विषय में बहुत ही सूचनागर्भित टिप्पणियों से युक्त है परन्तु उसकी ओर बहुत कम ध्यान दिया गया है। __नीचे दी गई नकल 'हिस्टोरीकल इन्सक्रिप्शन्स् ऑफ गुजरात' भा० २ में से उतारी गई है- परन्तु, इसमें क्रम पंक्तियों के प्राधार पर न रख कर श्लोकों के आधार पर रखा गया है कि जिससे पढ़ने में सरलता रहे। बड़े कोष्ठकों में प्रक्षर-पूर्ति भी कहीं उक्त पुस्तक की टिप्पणियों के अनुसार प्रौर कहीं-कहीं अपनी सूझ के अनुसार प्रयास करके करदी गई है कि जिससे लेख का तात्पर्यसरलता से समझ में पा सके और ग्रन्थकर्ता के अनुवाद तथा मूल लेख के भाव का अन्तर ज्ञात हो सके। (अनु०) श्रीधर की देवपाटण की प्रशस्ति १. [ॐ नमः शिवाय ॥ मनोमन्याविभूभ्यन्तसत्त्वमालावलम्बनम् । उपास्महे परं तत्वं पञ्चकुत्यककारणम् ॥१॥ वियद्वायुर्वह्निर्जलमवनिरिन्दुबिनकरशिवदाधारश्चेति त्रिभुवनमिदं यन्मयमभूत् । सवः श्रेयो देया [स्परमसुरनाथः सुरनरी तरूपां बिभ्राणः शिरसि गिरिजाक्षेपविषयः ॥२॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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