SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 660
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ परिशिष्ट [ ५२६ इस प्रकार पूर्णता (perfection) का भी त्याग कर देता है और सर्वव्यापक परमात्मा में लीन हो जाता है । शिव को नमस्कार ! दैत्यों का नाश करने वाले लक्ष्मीनारायण समस्त विश्व में विदित हैं; वे नमस्करणीय हैं । यह श्री सोमनाथ का मन्दिर रत्नकान्ति के समान सुन्दर है और सूर्य एवं चन्द्रमा की ज्योति के समान विशाल और प्रकाशमान है । समस्त सद्गुणगणों के निधान और वर्णनीय कोशों के श्रागार यह देव, सोमनाथ समस्त दुःखों श्रोर दुरितों का नाश करने वाले हैं । सर्वशक्तिमान् प्रभो ! श्रापकी जय हो ! श्राप समुद्रतटों पर शासन करते हैं । ब्राह्मण सोमपार (Sompara) पूर्ण ज्ञाता है, वह यज्ञों के विधिविधान, नियम, ध्यान, पूजा, उत्सव और बलि आदि की विधियों से सुपरिचित है । राजा वेर (Vera) के वंश में एक शाण्डिल्य गोत्रीय नृपति हुआ जिसने एक महान् यज्ञ किया । प्रणहिलपुर- पत्तन का सम्राट् राजा मूलराज संसार का रक्षक हुन । उसने नदी पर गङ्गाघाट बनवाया; उसके पुण्यकार्य बहुत हैं। मूलराज ने पानी के टाँके, कुए, तालाब, मन्दिर, धर्मस्थान, पाठशालाएं और धर्मशालाएं (कारवां-सरायें ) बनवाईं; ग्रतः ये सब उसकी शुभकीर्ति के प्रतीक बन गए; उसने नगर, ग्राम और ग्रामटिकाएं बसाईं तथा प्रसन्नता से उन पर शासन किया । वह इस विश्व में चूडामणि रत्न के समान हुआ; मैं उसके पराक्रमों का वर्णन कैसे करूँ ? उसने अकेले अपनी शक्ति से ही संसार पर विजय प्राप्त की और फिर उसका रक्षण किया । मूलराज के पुत्र श्रीमधु ने इस विश्वविजय को पूर्ण किया । उसने अपने राज्य में प्रजानों की अभिवृद्धि की और उन्हें सुसभ्य बनाया । उसने (शत्रुओं) से निर्भय होकर राज्य किया । इस राजा का पुत्र दुर्लभराज हुआ जिसने अपने विरोधी नृपों का उसी प्रकार नाश किया जैसे शिवजी ने कामदेव को जला कर क्षार कर दिया था। उसका छोटा भाई विक्रमराज था जो पराक्रम में सिंह के समान था । उसने विशाल सेना एकत्रित करके राजसिंहासन प्राप्त किया तथा स्वर्ग की देवाङ्गनात्रों को भी वश में कर लिया; उसकी कीर्ति तीनों लोक में फैल गई । समस्त राजोचितगुणों से विभूषित इस उच्चवंशीय राजा ने अपनी प्रजा को परम सुखी किया । विजय लक्ष्मी उसकी विजय पताका धारण करती थी । इस परमार वंश में श्री विक्रम के कुल में श्रीकुमारपाल राजा महाशूरवीर हुआ । वह परमप्रसिद्ध योद्धा था और समुद्र की लहरों के समान भयानक और विशाल राजा था। अब श्रीकुमारपाल का वंश-वर्णन करते हैं- चालुक्य वंश प्रतिप्रसिद्ध है; इसमें पोढ़ी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy