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पश्चिमी भारत की यात्रा
मिट गया है; लेख इस प्रकार पुनः चालू होता है ) वीरधवल' के मंत्री, सामन्तसिंह, जो गुजरात का स्वामी था और उसका पुत्र
प्रह्लादन........
सं० १३
तारंगा का शिलालेख
यह लेख मुझे प्रादिनाथ और अजितनाथ [के मन्दिरों] से पवित्र पर्वत के एक यति ने दिया था। इससे एक बड़े ही आश्चर्यकारक विषय का ज्ञान होता है जो तेजपाल र वसन्तपाल - बन्धुनों की अपार सम्पत्ति से सम्बद्ध है जिनके श्राबू और गिरनार पर्वतों पर कराए हुए (निर्माण) कार्यों का विवरण दिया गया है ]
स्वस्ति श्रीसर्वव्यापक सर्वशक्तिमान् को [ नमस्कार ] संवत् १२८४ ( १२२८ ई०) फाल्गुण सुदी २, रविवार । अणहिलपुर निवासी पोरवाल(Poorwur) जातीय चन्द का पुत्र श्रासो हुआ, उसके अखैराज और पत्नी नौकुँअर से लूणसर उत्पन्न हुआ; उसकी पत्नी मालदेवी और पुत्र बस [न्त ] पाल ने तारंगी पर्वत पर प्रथम और द्वितीय तीर्थङ्कर आदिनाथ और अजितनाथ के मन्दिरों का निर्माण कराया ।
सं० १४
पट्टण - सोमनाथ के स्तम्भ का शिलालेख
[ इस लेख की प्रतिलिपि, ग्रन्थकार की प्रार्थना पर, पुराणी (पौराणिक ? ) रामदत्त कृष्णदत्त पत्तननिवासी ने की और उसका (अंग्रेजी) में अनुवाद बम्बई निवासी मिस्टर वाथेन ( Mr. Wathen ) ने एक विद्वान् जैन साघु की सहायता से किया ।]
शाश्वत परमात्मा को नमस्कार जो पचीस सिद्धान्तों (तत्त्वों) का श्रादिस्रोत है ।
आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी-रूपी पञ्चतत्त्वों के ग्राधार सूर्य और चन्द्रमा हैं; जो कोई इनका ध्यान करता है वह मुक्ति प्राप्त करता है और
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पुरुषार्थ का प्रतीक |
- कनखलेश्वर के लेख (सं० १) से इसमें सहायता मिलती है और ज्ञात होता है कि प्रल्हादन, जिसको उस समय 'देव' उपाधि प्राप्त थी, धाराधर्षदेव का पुत्र और प्रतिनिधि था, जिसका एक छत्र चन्द्रावती नगरी पर छाया हुआ था और वह पाश्र्ववर्ती मण्डलों का ईश्वर (मण्डलकेश्वर ) था ।" मैं फिर कहता हूँ कि यह भारत - विजयी शाहबुद्दीन के प्रतिनिधि और उत्तराधिकारी कुतुबुद्दीन का यशस्वी विरोधी था ।
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