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________________ परिशिष्ट • खंगार के महलों के दरवाजे पर I ( गिरनार की वन्दना के बाद) यदुवंशी श्रीमाण्डलिक' नरेश्वर ने नेमनाथ के मन्दिर का विस्तार कराया। उसके नवघन (Nogan ) हुआ, नव खण्डों पर उसका अधिकार था; वह दयालु उदार और दानी था; उससे महीन्द्र महीपाल उत्पन्न हुआ । प्रहुसपत्तन ( प्रभासपत्तन) में उसने सोमनाथ के मन्दिर का जीर्णोद्धार कराया | उसका पुत्र खंगार * हुआ जिसने अपने शत्रुओं के फलवृक्षों पर अधिकार कर लिया । उसका पुत्र जयसिंहदेव था । उसका लड़का मोकल हुआ । उसका सुत मोलग ( मूलग ) था जिससे महीपाल उत्पन्न हुआ । उसका पुत्र माण्डलिक हुआ जो सौराष्ट्रमण्डल का अधिपति और भोज के समान महिमावान् था । सं. २ [ ५२७ ( इसके बाद शिलालेख माण्डलिक की प्रशस्ति के साथ समाप्त होता है जिसमें यात्रियों और साधुओं को स्पष्ट एवं आलंकारिक भाषा में सम्बोधित किया गया है - -M "क्यों याचना करते हो जब कि माण्डलिक कल्पवृक्ष विद्यमान हैं, उसी के पास जाओ, वह सदा प्रसन्न रहे ! ) सं० ४ - तेजपाल और वसन्तपाल द्वारा निर्मापित पार्श्व (नाथ) के मन्दिर के शिलालेख से सं० १२८७, फाल्गुन बुदि तीज, रविवार (१२३१ ई० ) अणहिलपुरपाटन में चालुक्य वंशी कमलराजहंस - श्रीमन्त राजावली महाराजाधिराज श्री " ( यहां लेख का महत्वपूर्ण भाग अर्थात् सार्वभौम राजा ( राजावली ) का नाम 1 इस राजवंश में 'माण्डलिक' पदवी थी जिसको धारण करने वाले चार हुए हैं; और क्योंकि प्रथम ( माण्डलिक ) पाटन के सिद्धराज (सं० ११५० - १२००) के समकालीन बँगार से चार पौढ़ी पूर्व हुआ था इसलिए इसके समय का हिसाब प्रासानी से लगाया जा सकता है। असिम ( माण्डलिक ) वह हुना जिसको महमूद बेगड़ा ने पराजित किया था । २ यह प्रायद्वीप नौ विभोगों में बंटा हुआ था । 3 सोमनाथ के मन्दिर का जीर्णोद्धार कराने वाले महीन्द्र ने सम्भवतः सार्वभौम राजा सिद्धराज के समय में यह पुण्यकार्य कराया था । ४ सौराष्ट्र में यदुवंशी परमप्रसिद्ध खंगार सुप्रसिद्ध सिद्धराज (जर्यासह) की देवड़ा राजकुमारी का पाणिग्रहण करने के कारण व्यक्तिगत वंर एवं स्पर्धा थी । Jain Education International * यहाँ माण्डलिक को स्पष्टतः सौराष्ट्र का स्वामी कहा गया है क्योंकि इस समय तक अहिलवाड़ा की दशा इतनी दुर्बल हो गई थी कि इन लोगों पर सिद्धराज द्वारा स्थापित श्राधिपत्य को इन्होंने उतार फेंका था । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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