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पश्चिमी भारत की यात्रा जो जिजरकोट की तलहटी' में अपने शत्रु जवन' का विनाश करके पुण्यपथगामी' हया।
संवत् राम, तुरङ्ग, सागर, मही, वैशाख मासे (सुदी) पञ्चमी ब्रिगुबसरी (भृगुवासरे) अथवा शनिवार के दिन यह पवित्र स्थल समर्पित हुअा और यह लेख स्थापित किया गया।
__सं० ११ (पृ० ३६६) सं. १-तेजपाल और बसन्तपाल-बन्धुनों द्वारा निर्मापित चन्द्रप्रभ-मन्दिर का शिलालेख।
पवित्रता के सागर-समान यदुवंश में इन्दु नेमीश्वर हुए जिनके चरणकमलों का अनुसरण करते हुए परमोच्च उज्जयन्ति' तक चढ़ कर यदुवंशियों के झुण्ड के झुण्ड युग-युग से नेमिनाथ" के चरणों में मस्तक नवाते आए हैं।
विक्रम संवत् १२०४६, बुधवार फाल्गुन'° मास को ६ तिथि को श्री
' किसी भी किले या गढ़ी को पहाड़ी के नीचे बसे हुए नगर या कसबे को तलहटी कहते हैं। परन्तु, मुझे इस नाम के किसी किले का ज्ञान नहीं है, यद्यपि अबुलफजल ने सौराष्ट्र
के पाठवें उपविभाग (जिले) में 'झमिर' नामक बन्दरगाह का जिक्र किया है। • हिन्दू लोग 'जवन अथवा यवन' शब्द का प्रयोग यूनानी और मुसलमान, दोनों के लिए
करते हैं। ३ राजपूत का 'पुण्यमार्ग' वही है जो रोमन का है अर्थात् पुरुषार्थ ; यह अभयसिंह अर्थात्
निर्भीक सिंह के लिए यहाँ प्रालंकारिक भाषा में कहा गया है कि वह युद्ध में मारा गया। ४ गूढ तिथि ५ इन्दु अथवा चन्द्र से उत्पन्न वंशों में यदु (यादव) मुख्य है । सम्भवतः नेमीश्वर इस वंश के
संस्थापक थे । 'नेम' अर्थात् 'नींव' और 'ईश्वर' अर्थात् स्वामी । • उज्जयन्ति अथवा उजैन्ति गिरनार का ही एक नाम है। देखिए पृ० (३६८) • इससे ज्ञात होता है कि निस्सन्देह यदुवंशी बुध अथवा जन-मत के अनुयायी थे। वास्तव में, नेमनाथ अथवा प्रसिद्ध रूप में नेमि (जो कृष्ण वर्ण के कारण अरिष्टनेमि कहलाते थे) यदुवंशी ही थे और श्रीकृष्ण के समकालीन ही नहीं वरन् समानु (Samadru) [समुद्रविजय के पुत्र होने के कारण बहुत निकट-सम्बन्धी भी थे । वस भाइयों में बसुदेव सब से बड़े और समानु सब से छोटे थे। [प्रा. हेमचन्द्र रचित त्रिषष्टिशलाका पुरुष चरित्र के अनुसार समुद्रविजय सब से बड़े थे
और वसूदेव सब से छोटे । अनु०] ८ मुझे विश्वास है कि इस संवत् में शून्य के स्थान पर ३ का अंक होना चाहिए और यह सवत् १२३४ होगा जैसा कि आगे वाले शिलालेख में है। बुधधार का नाम बुध के कारण पड़ा है। नया काम प्रारम्भ करने के लिए यह दिन
शुभ माना जाता है। ।' फाल्गुन वसन्त ऋतु का मुल्य महीना है।
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