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परिशिष्ट
[ ५२३ सं० १ (पृ० ३८५) [ इस लेख का भी पता नहीं चलता
सं० १० (पृ० ३८५-८६) (दामोदर कुण्ड में रेवती-कुण्ड पर (लघु पत्थर पर उत्कीर्ण) लेख का अनुवाद)
श्री गणेशाय नमः; जिसकी कृपादृष्टि के लिए योगीश्वर और मुनीश्वर निरन्तर आकांक्षा करते हैं उसको नमस्कार । जिसने गोपियों' का दधि लूटा, जिसके हाथ यशोदा' ने दाम' (रस्सी) से बाँध दिये थे वही सृष्टिकर्ता विष्णु दामोदर (के रूप में) यहाँ विराजमान हैं।
पुरातन काल में यदुवंशी माण्डलिक नरेश था । वह शत्रुओं के लिए खिलाड़ी (Athlete) के मुद्गल' [मुग्दर] के समान था। वह लक्ष्मी का कृपापात्र था और भूपतियों को उसका आदेश मान्य था । उसके वंश में महीपाल हुवा जिससे पृथ्वीश्वर खंगार' की उत्पत्ति हुई । वह कैसाक था ? शत्रुओं का मर्दन करने वाले [मत्त गज के समाम । उसने सोमेश्वर' के स्थान का निर्माण कराया और ब्राह्मणों को नित्य रजतमुद्राओं का दान किया। उसके जयसिंहदेव नामक पुत्र हुआ जो प्राचीन नन्द के समान था। वह कैसाक था ? ऐसा जिसने चारों वर्गों और आश्रमों (Aterums) का रक्षण किया। उसके विक्रमसिंह हुमा जो शत्रु-रूपी गज पर सदा विजयी होता था। उसकी समानता कौन कर सकता था? बड़े-बड़े बलिष्ठ मुकुटधारी हो चुके हैं, स्त्रियों ने कितने ही पुत्रों को जन्म दिया है परन्तु उस सामन्ताग्रणी के समान कोई नहीं हुआ। उसके माण्डलिक हुआ जिसका पुत्र भाग्यशाली और शरणागतवत्सल मेलग था। उसका पुत्र जयसिंह था जिसके राज्य में वीराग्रणी अभयसिंह यादव हुमा,
' गोचर-भूमि बज को ग्वालिन, जहाँ कृष्ण अथवा कन्हैया का जन्म हुआ था। २ कन्हैया की माता। 3 बही बिलौने की रस्सी (नेता)। ४ लकड़ी के बड़े-बड़े हत्थेवार लट्ठ । इन्हें व्यायाम के अध्यापक प्रयोग में लाते थे। ५ जिस प्रासाद का चित्र दिया गया है उसका निर्माण इसी खंगार ने कराया था। ६ सोमेश्वर अथवा सोमनाथ-'चन्द्रमा का स्वामी यह शिव की उपाधि है और सूर्यदेवता
पर भी लागू होती है। . 'माण्डलिक' यद्यपि व्यक्तिवाचक संज्ञा है,परन्तु यह एक उपाधि भी है 'मण्डल का अधिपति'।
इस नाम का और 'खंगार' का परम्परामों में खूब निर्वाह हुमा है। जूनागढ़-गिरनार की प्रत्येक वस्तु इनमें से किसी न किसी एक से अवश्य सम्बद्ध है।
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