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________________ ५२० ] पश्चिमी भारत की यात्रा चावड़ा के पुत्र कोल्हणदेव ने सोहन के पुत्र लूणसी और दो महाजन बालजी तथा करण के साथ साप्ताहिक व्यापार का लाभ मन्दिरों को भेट किया। यावच्चन्द्र दिवाकर इसे नहीं ग्रहण करेंगे। फीरोज को इसकी व्यवस्थापालन की आज्ञा दी गई। समय उत्सव की भेट खर्च होती रहे और अतिरिक्त भेट धर्मस्थान के जीर्णोद्धार हेतु कोश में जमा रहे । चावड़ों और नाखुदा नूरुद्दीन को महाजनों और मुसलमानों की बस्ती में इस आदेश का पालन कराने की आज्ञा हई । इस आदेश को मानने वाले के भाग्य में स्वर्ग और इसको तोड़ने वाले के भाग्य में नरक प्राप्त होगा।' २. पाटण से प्राप्त बेलावल का दूसरा शिलालेख श्रीमद् बलभी, ६२७, फाल्गुन सुद बीज, बुदवार, आदि श्री, देवपत्तन, मूल जोग गोहिल एवं अन्यों ने गोरधननाथ के मन्दिर का निर्माण कराया। २. ' इस शिलालेख की एक नकल (किंचित् परिवर्तन के साथ) ग्रन्थकर्ता की विव रणात्मक टिप्परिणयों सहित 'राजस्थान का इतिहास' के भाग १ के परिशिष्ट में छपी है। १. ॐ॥ ॐ नमः श्रीविश्वनाथाय ।। नमस्ते विश्वनाथाय विश्वरूप नमोस्तुते । नमस्ते सू (शून्यरूपाय लक्षालक्ष नमोस्तु ते ॥१॥ श्रीविश्वे नाथ प्रतिबद्धता जनानां बोधक रसूलमहंमद संवत् ६६२ त३. या श्रीनृप (वि)क्रम सं० १३२० तथा श्रीमद्वलभी सं० ६४५ तया श्रीसिंह सं० १५१ वर्षे प्राषाढ वदि १३ र वावयह श्रीमदणहिल्लपाटपाधिष्ठितसमस्तराजावलीसमलंकृत परमेश्वरपरम __ भट्टारक श्रीउमापतिवरलब्धप्रौढप्रतापनिःशङ्कमल्ल . परिरायहृदयशल्य श्रीचौलुक्यचक्रयत्तिमतत्पादपोजन हाराजाधिराज श्रीमत् अर्जुनदेव-प्रय मान-कल्यामविजयी महामात्यराणकश्रीमालवेवे श्रीश्रीकरणादिसमस्तमुद्राव्यापारान् परिपंययतीत्येवं का-" ले प्रवर्तमाने इह श्री सोमनाथदेवपत्तने परमपाशुपताचार्य महापंडित ___ महत्तरधर्ममूत्ति गण्डश्रीपरवीरभद्रपारि 'मह' श्रीअभयसीहप्रभृतिपञ्चकुलप्रतिपतो तथा हुमजवेला फूले अमीर-धीरुकनवीनराज्ये परिपंथयति सति कार्यवशात् श्री सोमनाथदेवनगरं स १०. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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