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परिशिष्ट
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ई०) में, प्राषाढ बुद १३ रविवार (Rubewar) । श्रीमद् अण्हल (पुर) पाट (लाल (scarlet) अथवा पाटण को अपभ्रंश) में अनन्त-सामन्तविराजमान, परमेश्वर-भट्टारक-ऊमियेश्वर (Lord of oomia) (उमापति ?) वरप्राप्त, परमभाग्यशाली, निर्भय, शत्रुसमूह-कण्टक श्री चालुक्य चकवर्ती महाराजाधिराज श्रीमद् अर्जुनदेव (?) (Urgoon Deva) सर्वविजयी। उसका मन्त्री श्रीमालदेव, राज्य के विभिन्न कार्याधिकारी, पंचकुल, बेलाकूल (बेलाउल) के हुरमुज सहित, पुण्यमार्गगामी अमीर रुक्नु द्दीन के राज्य में और साथ ही नाखुदा नूरुद्दीन फीरोज का पुत्र हुरमुजनिवासी खोजा इब्राहीम तथा चावड़ा' पलकदेव (पीलुगि) (Palook Deva), राणिक श्री सोमेश्वरदेव, चावड़ा रामदेव, चावड़ा भीमसिंह एवं अन्य सभी चावड़ा तथा इतर जातीय सरदार एकत्रित हुए । नैणसी राजा चावड़ा ने देवपत्तन निवासी महाजनों को एकत्रित करके मन्दिरों की भेट निश्चित की व जीर्णोद्धार का प्रबन्ध किया; कि रत्नेश्वर, चौलेश्वरी', पुलिन्ददेवो के मंदिरों तथा अन्य कतिपय मन्दिरों में पुष्प, तेल और जल निरन्तर चढ़ाया जाय । सोमनाथ के मन्दिर के चारों और परकोटा बनवाया गया जिसका मुख्य द्वार उत्तर की ओर रखा गया। मोदुल (Modul)
३. मूल लेख के अनुसार इस शिलालेख का उद्देश्य किसी हुर्मज निवासी मुसलमान नाखुदा द्वारा बनवाई हुई मस्जिद के लिए एक भू-खण्ड, जिसमें कुछ प्राच्छादित मकान थे, एक तेल-घाणी और दो दुकानों की प्राय समर्पित करना है । इसी में सोमनाथ पट्टण के अन्य नाविकों द्वारा विशेष उत्सवों पर इसी आय में से व्यय करने का उल्लेख है। शेष द्रव्य मक्का-मदीना भेज देने का विधान है। सोमनाथ पट्टन के मुसलमानों की जमाथ (समूह या समिति) को इस प्राय की देखभाल के लिए नियुक्त किया गया है।
४. लेख की भाषा संस्कृत है परन्तु शुद्ध नहीं हैं। फिर भी इसमें मुसलमानी भाषा के शब्दों ओर धार्मिक रीति-रिवाजों का उल्लेख किया गया है । अतः यह पठनीय और अध्ययनीय है। इसमें पाए हुए घाणी, चूना, छोह, छाद्य क आदि देशी शब्द और नाखू या नाखुदा, खोजा, अमीर, रमूल, महम्मद, सहड, मुशलमान. मिजिति (मस्जिद), खतीब, मालिम, जमाय, चुणकर, आदि अरबी फारसी शब्दों के यथावत् अथवा विकृत रूप दर्शनीय हैं ।
५. मूललेख और कर्नल टॉड (Col. Tod.) कृत अनुवाद का अन्तर देखने पर ऐतिहासिक तथ्यों, नामों, भाषा और लेख को मूलभावना सम्बन्धी भेद सहज ही स्पष्ट हो जाते हैं। ' मूल लेख में 'छाड़ा' लिखा है। • सोमनाथ (पट्टण) में शिव का विशाल मन्दिर । । चालुक्यवंश की कुलदेवी ।
भीलों की देवी।
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