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प्रध्याय - २३, बम्बई
[ ५०१ बोला लेकिन हाथ में प्याला लिए उसे आगे बढ़ाए मुझ पर अांखें गडाए रहा मानो मेरे इस कार्य के लिए जवाब चाह रहा हो। 'खयाल करो अयूब', मैंने कहा, 'यह तुम्हें पागल बना दे और तूफान आ जाय ।' 'साहेब' बस उसने यही जवाव दिया और उसकी मुद्रा में कोई परिवर्तन नहीं पाया । 'सोचो अयूब, अगर बम्बई के बन्दरगाह पहुंचने पर मैं तुम्हें पूरी बोतल देने का वादा करूं तो क्या तुम आज की रात एक प्याले की माँग को न छोड़ सकोगे ?' हाथ और प्याला पीछे हट गए और यद्यपि उसके चेहरे पर उसो पुरानी कहावत 'नौ नकद तेरह उधार' के भाव अंकित थे फिर भी उसकी आकृति मुस्कराहट में बदल गई और किसी तरह उसने कह ही दिया 'मैं समझता हूँ, आप ठीक कहते हैं।'
पाँच दिन तक हम शान्तिपूर्वक सुहावने मौसम में समुद्र में यात्रा करते रहे और कोई विशेष बात नहीं हुई; तब हम गौरवपूर्ण दृश्यों से युक्त बम्बई के प्रवेश-द्वार पर पहुंचे जहाँ अत्यन्त विभिन्न और गम्भीरतम वातावरण था, सभी तरह के सामान, पर्वत, जंगल, द्वीप और पानी आदि मौजूद थे । परन्तु, उस दिन चौदहवीं तारीख थी-'सराह' के इंगलैण्ड के लिए रवाना होने के लिए निश्चित तिथि से पहला दिन-दो बड़े जहाजों के खुले हुए आगे के पालों ने मेरा ध्यान अन्य सभी बातों से हटा लिया। मैंने पेंसिल से एक नोट (टिप्पण) लिखा और तरकीब से एक जहाज के तख्ते पर भेज कर यह मालम किया कि इनमें से कोई मेरा जहाज भी था क्या ? इधर, मैंने अपने सिपाहियों और खिदमतगारों को जल्दी से नाव में से उतारा कि जिससे जो कुछ भी परिणाम हो उसके लिए तैयार रहूँ। कुछ ही क्षणों में मेरा डर दूर हो गया; वे दोनों ही 'सराह' से पहले इंगलैण्ड के लिए स्वाना होने वाले थे। माँझियों को इनाम-इकराम देकर और जोब (अयूब) को 'विलायती दूध' अर्थात् ब्राण्डी की बोतल देना न भूल कर मैंने अपना साज-पो-सामान किनारे पर उतरवाया जिसमें अंगभंग देवता [प्रतिमाएं], शिलालेख, शस्त्रास्त्र, हस्तलिखित ग्रन्थ प्रादि चालीस-संख्यक बकसों में थे, और फिर उनको डेरे तम्बुनों के नीचे रखवा दिया जिनका प्रबन्ध मेरे मित्रों ने कृपापूर्वक करवा रखा था। जहाज रवाना होने तक मुझे तोन सप्ताह रुकना पड़ा और इस अवधि का प्रत्येक दिन मेरी चिर-चिन्तित योजना के पूरी न होने के दुःख को बढ़ाता ही रहा-इस आकांक्षा की पूर्ति के लिए इससे प्राधा ही समय पर्याप्त था। परन्तु, बहुत थोड़ी ही बुराइयां ऐसी होती हैं जिनकी क्षतिपूर्ति में अच्छी बातें न होती हों-अनः इस अवसर पर मेरे रुक जाने के परिणाम सिन्धु की यात्रा से अपेक्षित परिणामों से कहीं बढ़ कर महत्वपूर्ण और आकर्षक हो निकले । जहाज में रवाना होने से कुछ दिन पहले तत्कालीन
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