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________________ ५०० ] पश्चिमी भारत की यात्रा जो 'नाव का मालिक' (नाखुदा) था और दूसरा अय्यूब; इनके साथ ही एक इसमाइल और था। यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि सभी माझी मुसलमान थे। अय्यूब बातूनी और मसखरा आदमी था और यद्यपि समझदारी के चिह्न उसको दाढ़ी को इज्जत बख्शने लग गए थे फिर भी जो अच्छाइयाँ उसमें नहीं थीं उनका दिखावा करने की अपेक्षा अपनी जिन्दादिली को बनाए रखना ही वह बेहतर समझता था; वह हर चीज और हर आदमी की मजाक उड़ाता था और कोई भी काम करने के लिए उसके नाखुदा को उसे दो बार कहना पड़ता था । फिर, पैगम्बर की हिदायतों के बावजूद ताज़ा पानी से कुछ ही बेहतर 'प्राबे हयात' का स्वाद भी उस मल्लाह ने चख लिया था जिसका पहला परिचय उसने मुझे बड़ी सादगी और चतुराई के साथ दिया। नाखुदा से बातचीत करते समय अय्यूब भी बीच-बीच में एकाध शब्द बोलने की कोशिश करता था और मौका पाकर उसने बड़ी गंभीरता से कहा 'मैंने 'वलायती दूध' अथवा 'यूरोप के दूध' के बारे में बड़ी अजीब कहानियां सुनी हैं कि वह एक ऐसी (पीने की) दवा है जो दिल ओ' दिमाग की सभी खराबियों को दूर कर के राहत पहुँचाती है। क्या आप जानते हैं, वह क्या चीज है ?' और ज्यों ही एक तीखी मुस्कान मेरे चेहरे पर गुज़री उसने तुरन्त पूछ लिया, 'पाप के पास है ?' मैंने कहा 'मैं जानता हूँ, मेरे पास है भी, और तुम्हारी जिज्ञासा शान्त करने के लिए कुछ दे भी दंगा लेकिन पहले यह बतायो कि तुम्हें उस चोज़ के गुण कसे मालूम हुए जिसे छूना भी 'शरीयत' में मना है ?' उसने जवाब दिया, 'एक अफसर का सामान बम्बई से पोरबन्दर ले जाकर भारी बरसात में उतारा था तब उसने मुझे और साथियों को एक-एक गिलास 'अरक' या रुह का दिया था और मेरे सवाल करने पर यही नाम बताया था।' मैं अय्यूब और उसकी बातचीत को भूल चुका था और अपनी कोठरी में मोमबत्ती के पास बैठा कुछ पढ़ रहा था कि किसी ने अन्दर आने की इजाजत चाही; यह अय्यूब था और हाथ में खोपरा या नारियल का कटोरा लिए मुझ से वादा पूरा कराने का ख्वास्तगार था। मैंने एक खिदमतगार को बोतल लाने के लिए कहा और उसे खोपरे में उंडेलने ही वाला था कि मुझे खयाल आया कि में बेवकूफी कर रहा था और शायद इस तरह हमारे नायब नाखुदा को यात्रा के पूर्वार्द्ध में ही बेकाबू बना रहा था। यदि किसी सिपाही को मौत की सज़ा सुना दी गई हो और 'बन्दूक दागो' के बजाय 'हथियार वापस लो' का शासन दिया जाय तो शायद वह इतना स्तम्भित और पाश्चर्यचकित न दिखाई देगा, जितना कि उस समय जोब (job)(अयूब) दिखाई दिया। जब मैंने पासव की बोतल को वापस सीधी कर ली तो वह बिलकुल बेजुबान था, एक शब्द भी न Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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