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________________ ४६८ ] पश्चिमी भारत की यात्रा दूरस्थ दर्शनीय स्थान अर्थात् सिन्ध के मुहाने पर जाने का विचार छोड़ना पड़ा और तुरन्त जहाज पर चढ़ जाना पड़ा, जिसमें मुझे बंबई पहुँचने के लिए समुद्र में पांच सौ मील का रास्ता पार करना था । पाल खोल दिए गए श्रौर माण्डवी के मित्रों से विदा लेकर हम बढ़िया हवा में खाड़ी के पार खड़े थे - इस प्रकार हिन्दुनों के फिनिस्ट (Finisterre) [ जगतकूंट ] से चल कर हम अपने मार्ग में चावड़ों की प्राचीन राजधानी देव-बन्दर की ओर अग्रसर हुए जहाँ उतर कर मैंने अणहिलवाड़ा के संस्थापकों के इस जाति से सम्बद्ध शिलालेखों की खोज करने का इरादा कर रखा था । परन्तु, यह उपलब्धि मेरे भाग्य में नहीं थी क्योंकि मेरे 'नाखुदा' ने यह कह कर इरादा बदलवा दिया कि यदि में इस तरह रास्ते में घूमता रहा और हवा के अनुकूल रुख का कोई भी अवसर हाथ से निकल जाने दिया तो किसी भी दशा में मेरे लिए १४ तारीख तक बम्बई पहुँचना सम्भव नहीं हो सकेगा । मुझे चुपचाप मान लेना पड़ा और मेरे पट्टामार का मुंह स्थल की ओर से पलट दिया गया अथवा जैसा कि इब्राहीम ने कहा 'अब हम को 'लीले' [नीले] के बजाय लाल में खेना पड़ेगा ।' में ऐसी मल्लाही भाषा से परिचित नहीं था इसलिए इब्राहीम के कुतुबनुमा को सन्दूक के सामने बैठ कर प्रत्यक्ष में समझने-समझाने के लिए जहाज के पिछले भाग से नीचे उतर प्राया। जल्दी ही भेद खुल गया; मैंने देखा कि उसके कम्पास यन्त्र के उपविभागीय सिरों पर अक्षरों के बजाय नीले, लाल, हरे और पीले आदि विविध रंग चिह्नित थे और वे उस स्थान पर सरलता से सुरक्षित थे जहाँ सामान्य बुद्धि की पहुँच नहीं होती । इब्राहीम यद्यपि साक्षर नहीं था तो भी बेजानकार नहीं था; उसकी बुद्धि का विकास अनुभव की सर्वश्रेष्ठ पाठशाला में हुप्रा था और वह अक्षरों की सहायता के बिना जहाज ही नहीं चला लेता था अपितु सितारों को भी अपने मार्ग-दर्शन के लिए श्रामन्त्रित कर लिया करता था । सुहावनी हवा और निरभ्र आकाश के श्रालम में हम चलते रहे और जब तक चारों ओर अन्धेरा न फैल गया श्रागे बढ़ते ही रहे। उस समय हवा बन्द हो गई थी, रात गम्भीर श्रीर सुन्दर थी; 'मृगशिर नक्षत्र अपने दल के साथ' विजयोल्लास में हमारे सिर पर ना चुका था और उस गहरी निस्तब्ध शान्ति को मेरी नाव के मृदु सन्तरण से उत्पन्न लहरियों के स्वर के अतिरिक्त कोई छेड़ने वाला नहीं था । वह चिन्तन की रात्रि थी और मैं 'अतीत की मृदु स्मृतियों एवं भविष्य की मीठो कल्पनाओं' में खो गया । Jain Education International चिन्ता के प्रास्तीन का मुंह बन्द करने वाली और दिन भर के जीवन की मृत्यु, नींद For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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