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________________ प्रकरण - २३; माण्डवी [ ४९७ 'इमरत [अमृत ] की घूंट' लेता है तो भविष्य की चिन्ता अपने आप दूर भाग जाती है । इस प्रकार पथ-प्रदर्शक के अभाव में जाड़ेचों ने एक ऐसी जाति से भाईचारा बांध लिया है जिसके प्रालिङ्गनपाश से उन्हें अभी तक मुक्ति नहीं मिल पाई है । वह समय अब दूर नहीं है जब कि ब्रिटिश नौकरशाही की सामान्य सूची के जज, कलक्टर और अदालतें (adawlets) श्रादि सम्पूर्ण सायराष्ट्रीन ( Sayrastrene ) में फैल जायेंगे; जब कि कोई भाई डी' एनविले अथवा रेनेल (Rennell) अब तक के इस अनिर्णीत मुद्दे को तय करेंगे कि डेल्टा की किस भुजा को पार करते हुए मेसीडोनिया का बेड़ा बेबीलोन पहुँचा था; श्रथवा जब कोई श्राधुनिक लाइकर्गस (Lycurgus ) ' उस प्रश्न को हल करेगा, जो एक प्रकार से बड़ी टेढ़ी खीर बना हुआ है कि जाड़ेचों को कैसे सभ्य बनाना, गोरखर अथवा रण के जंगली गधों पर नियंत्रण का जुना रखना, पूर्व जाति (जाड़ेचों) को शिक्षित करके बाल वध, बहु-विवाह और बाँटा-दर- बांटा की विनाशकारी नीति की बुराइयों बताना इत्यादि ? सौराष्ट्र प्रायद्वीप की विभिन्न जातियों द्वारा गायकवाड़ की श्राधीनता से निकल कर सामन्ती एवं राजस्व के अधिकार हमारी शक्ति को हस्तान्तरित करना स्वागत को विषय होगा क्योंकि वे अभी तक हम को केवल अपनी भलाई के लिए मध्यस्थ ही मानते श्रा रहे हैं; श्रीर यद्यपि राजपूताना में अपनी जैसी एक ही सभ्यता के इन अवशेषों पर विस्तृत प्रभाव और अधिकार का मैं कट्टर विरोधी रहा हूँ, फिर भी कच्छ की वर्तमान नैतिक और राजनीतिक अवस्था में कोई भी प्रकार उस चालू दशा से तो श्रेयस्कर ही होगा जिससे हमारी प्रकृति के पहले सिद्धान्त की अवहेलना होती है। और जो मानवता को पशु-सृष्टि से भी निम्नतर श्रेणी में ले जा कर रख देता है । माण्डवी - ७वीं जनवरी - मेरे पट्टामार (जहाज) के तख्ते पर । मैंने जाड़ेचों की राजधानी से पूरी तत्परता के साथ कदम वापस बढ़ाए और आज प्रातः पुनः ' मण्डी' में श्रा पहुँचा । हवा बिलकुल अनुकूल चल रही थी इसलिए मुझे अपने ' लाइकस स्पार्टा के बादशाह इम्रानॉमस ( Eanomus) का पुत्र था। कहते हैं कि पूर्वीय देशों की यात्रा करके जब वह स्वदेश लौटा तो वहाँ अराजकता फैल रही थी। उसने विधान बनाया और प्रजा से यह शपथ ले ली कि जब तक वह पुनः नहीं लोटेगा तब तक सब उसके बनाए हुए नियमों और विधान के पाबन्द रहेंगे। प्लूटार्क का कहना है कि अपनी प्रजा में सदाचार प्रौर नियम पालन को कायम रखने के उद्देश्य से फिर वह कभी वापस नहीं आया और अन्यत्र ही कहीं अपने जीवन का अन्त कर दिया। PP. ( 477-78) -The Oxford Companion to English Literature; Paul Harvey Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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