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________________ ४६६ ] पश्चिमी भारत की यात्रा बहुत अधिक भयोत्पादक होते हैं । यदि अमल और तीव्र मद्यपान का प्रेमी राजपूत जीवन के मध्याह्न में पहुंचने तक 'कलेवा'" करने की इच्छा छोड़ दे तो अवश्य ही वह उसके पुनर्जीवन की प्रबल प्राकांक्षा समझी जायगी। परन्तु, इस 'सहायक सन्धि' रूपी राजनीतिक पिशाची के विशिष्ट भय का न यहूदी उपदेशक को भान था न राजपूत चारण को ज्ञान । यह अनुमान करना भूल होगी कि जाड़ेचा इस प्रकार की अपरिवर्तनीय और अटल सन्धि के लिए अपवाद रहेंगे, जिसने ध्रुव सत्य के समान संस्थापित होकर एक उच्चतर सभ्यता के मेल से प्रत्येक अर्धबर्बर स्थिति का अन्त कर दिया है, और यहाँ में इस स्पष्टोक्ति के लिए अनुमति चाहूंगा कि हमारे इरादे कितने ही नेक क्यों न हों फिर भी प्रतिनिधि सभा के बृटिश रेजीडेन्ट, हमारी ही सृष्टि के प्राणी और हमारे प्रभाव सक्रिय दूत [fu] रतनजी कितने ही भले क्यों न हों और उन जागीरदारों के कारण जिन्होंने जाडेचा राजदण्ड को हमारे चरणों में ला पटकने का अक्षम्य अपराध किया है, ये सब अपनी रक्षा के लिए हमारे मुखापेक्षी हो गए हैं । यह एक बहुत बड़ी बात होगी यदि इस रियासत को, जो भूतकाल की निशानी है और भविष्यत् में भी उदाहरण बनी रहेगी, इस नियम का अपवाद बना दिया जावे, उस समय तक जब तक कि राजपूताना के अन्तिम 'नॅस्टर' " जालमसिंह की भविष्यवाणी- - 'समस्त भारत में एक ही सिक्का चलेगा- पूरी न हो जाय और यह भविष्याकलन बड़ी तेजी से पूर्ति की ओर आगे बढ़ता नज़र ना रहा है । वह जालिमसिंह अपने देशवासियों की अदूरदर्शिता को अच्छी तरह जानता था और समझता था कि वे अपने गले के हार से, जब वह चुभने लगेगा तो तुरन्त हो, गर्दन निकाल कर उस जूए के नीचे दे देंगे जिससे उनका कभी निस्तार होने वाला नहीं है । 'अमलपाणी' की सत्यानाशी कुटेव ने भाटों, चारणों और वरदाइयों की उस उपदेशात्मक प्रतिभा को कुण्ठित कर दिया है जिसके द्वारा वे अपने 'बैंडे', [ बांके ] सरदार को श्रापत्तियों के प्रति सजग किया करते थे, और अब यदि उसी चारण की शब्दावली का प्रयोग करें तो जब वह अपने स्वामी के साथ • प्रातःकाल में ही अफीम श्रादि के सेवन से तात्पर्य है । नॅस्टर ( Nestor) पाइलॉस ( Pylos ) का शासक था। उसने प्रसिद्ध ट्रॉजन युद्ध अपने सैनिकों का नेतृत्व किया था और बाद में वृद्धावस्था में अपनी बुद्धिमत्ता, न्याय और वक्तृत्व शक्ति के लिए प्रसिद्ध हुआ । - The Oxford Companion to English Literature ; p. 552. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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