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प्रकरण २३
कच्छ के आंकड़े और भूगोल; इसका राजनीतिक गठन ; 'भायाद'; राव के अधिकार; जागीरों के पट्ट; उत्तराधिकार के झगड़े; 'भतना या अन्तर्जागीरों की समाप्ति; पश्चिमी राजपूत रियासतों और कच्छ के राजनीतिक रिवाजों में अन्तर; ब्रिटिश सरकार से सम्बन्धों का परिणाम, राव और 'भायाद' के विवाद में ब्रिटिश मध्यस्थता; ब्रिटिश सहायक सेना की स्थापना, ब्रिटिश का पूर्ण अधिकार; माण्डवी; पट्टामार के बोर्ड पर; खाड़ी के पार व्हेल मछली के दर्शन; पट्टामार के नाखुवा और नाविकों का चरित्र; बम्बई पहुंचना; वहां पर रुक जाना; इसके शुभ परिणाम ; उपसंहार।
कच्छ के राजनीतिक और भौगोलिक आँकड़ों एवं विवरण के बारे में लोगों को पहले से ही बहुत कुछ मालूम है; इसलिए मैं यहाँ पर पहली बात के विषय में ही कुछ कहूँ। क्योंकि मुझे जाड़ेचों की प्रान्तरिक नीति और अन्य राजपूत रियासतों की नीति के अन्तर पर अभिमत प्रकट करना है। इस सूचना के बारे में भी मुझे बुद्धिमान् रतनजी के प्रति एक बार पुनः आभार प्रकट करना चाहिए, जो रीजेन्सी के सब से अधिक जानकार सदस्य हैं। उन्होंने मेरे सभी प्रश्नों के वाचिक उत्तर दिए जो मैंने उन्हीं के सामने लेखबद्ध कर लिए थे और उन्हीं के आधार पर मैं निम्नलिखित निष्कर्षों पर पहुँच सका हूँ। . जाडेचा रियासत का विस्तार लगभग एक सौ अस्सी मील लम्बे पोर साठ मील चौड़े भूभाग पर है; जमीन को किस्म मामूली, उपेक्षापूर्ण कृषि और हल्की आबादी; यह देख लीजिए कि दस हजार वर्ग मील से भी ऊपर क्षेत्रफल है फिर भी यहां के निवासियों की संख्या केवल आधा लाख होगी जिसका एक-बीसवाँ भाग राजधानी भुज में सीमित है और इतना ही माण्डवी के बन्दरगाह में। इन दो के अतिरिक्त और कोई ऐसी जगह नहीं है जिसको नगर कहलाने का सम्मान प्राप्त हो सके। यद्यपि कुछ कस्बे हैं जैसे, अंजार, लखपत, मंडिया इत्यादि जो केवल समुद्री-तट पर स्थित होने के कारण ही प्रसिद्धि प्राप्त कर सके हैं । इस जन-संख्या में से शासक-जाति के शस्त्र-धारण करने योग्य जाडेचों की संख्या केवल बारह हजार आंकी जाती है; बाकी लोग हिन्दू, मूसलमान आदि सब जातियों के हैं । राज्य की सम्पूर्ण प्राय, जिसमें सामन्तों से वसूल होने वाला कर और राजस्व भी शामिल है, पचास लाख कौड़ी या सोलह लाख रुपया है । इस राज्य के पांच में से तीन भाग राज्य (खालसा) के और दो भाग जागीरी के हैं। उल्लेख योग्य बड़े जागीरदारों की संख्या पचास के
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