________________
प्रकरण
[ ૪૬૭
काल में स्थायी सरकार का रूप ग्रहण कर लेती है । यह खंगार वंशावलियों में इस नाम का पाँचवाँ राजा हुआ था । लगभग एक हजार वर्षों के इस ताने-बाने की गुत्थियों के जाले से बाहर निकल कर मुझे सन्तोष है कि 'काल' के जाल में से कुछ ऐतिहासिक तथ्य निकाल पाया हैं, यद्यपि विरोधी लोग इनको पूर्णतया ऐतिहासिक नहीं मानेंगे ।
Jain Education International
-
२२; भुज राज्य का संस्थापन
जब तक खंगार को अहमदाबाद के सुलतानों की सहायता से स्वतंत्र राजा की पदवी प्राप्त न हो गई अथवा उसने स्वयं ग्रहण न करली तब तक प्रत्येक जाड़ेचा बराबरी का दावा करता रहा और 'भायाद' में से किसी को भी उसने स्थायी रूप से स्वामी स्वीकार नहीं किया। ऐसी एक सर्वाधिकारपूर्ण सत्ता इन लोगों की बिखरी हुई जायदादों में सुदृढ़ता लाने एवं एक रियासत का निर्माण करने के लिए आवश्यक थी । तब से अब तक कुल बारह राजा हुए हैं, जिनमें से प्रत्येक को सन्तानों को जागीरें दी गई हैं और ये तथा खंगार से पहले की प्राचीन शाखाएं मिल कर एक 'भायाद' बनाती हैं, जिसका एक संक्षिप्तसा विवरण दे कर, जो सुदूर पूर्व की राजपूत रियासतों के प्रकार से भिन्न है, मैं कच्छ और जाड़ेचों की रूपरेखा को पूर्ण कर दूंगा ।
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org