________________
४८६ ]
पश्चिमी भारत की यात्रा वंश राज्य करता था और कर्नल पॉटिझर (Colonel Pottinger)' के अनुसार इस जाति ने टाक अथवा तक्षक (गेटिक वंश की एक प्रसिद्ध) जाति से अधिकार प्राप्त किया था, तो ऐसी दशा में हम यह निष्कर्ष निकालने में सक्षम हैं कि सुम्मायादव पश्चिमी एशिया से पाने वाली इन जातियों और वंशों के संघों में या तो खो गए, मिल गए अथवा उनके आधीन हो गए थे। सन् ६०४ ई० में चूड़चन्द से पूर्व छत्तीस राजाओं के नाम मिलते हैं, जो दूसरी शताब्दी में इण्डो-सीथिक जाति द्वारा सिन्ध-विजय के समय से उसकी श्रृंखला मिलाने के लिए पर्याप्त हैं और, क्योंकि वस्तुतः वंश के संस्थापक साम्ब से उ.का सम्बन्ध मिलाने के लिए अधिक कड़ियां नहीं मिलती हैं, इससे यही मान लेना चाहिए कि ऐसे नाम है ही नहीं। इनमें से बहुत से नाम तो राजपूतों में अप्रचलित नहीं हैं, परन्तु कुछ ऐसे हैं जो सिन्धु के हिन्दुओं से नहीं मिलते हैं और उनमें उन सीथिक तथा हूणी जातियों की तीव्र गन्ध पाती है, जिनके दल के दल इस देश में दूसरी तथा छठी शताब्दी में चले पाए थे, जैसे प्रोसनिक [Osnica-उष्णिक् ?], विसूबरा (Wisoobare विश्वम्भर ?], ऊंगड़ (Ungud), दुर्गक (Doorguc), कायीमा (Kayea) और इनका प्रति प्रसिद्ध वंश नाम खंगार । उदगम या निकास कहीं से भी हो, परन्तु यह निश्चित है कि यह वंश 'साम नगर' में चूड़चन्द से कई पीढ़ियों पहले जम चुका था, जिसका नाम उसके पड़ोसी राज्यों में भी प्रसिद्ध था और जिसके समय अर्थात् १०४ ई० से अब तक हमें निश्चयात्मक सूत्र मिल रहे हैं। इसलिए अब कल्पना और अनुमान की भूल-भुलैया में और अधिक चक्कर काटने से कोई फल निकलने वाला नहीं है। चूड़चन्द के पुत्र साम-यदु के समय में ही सुम्माओं का वंश और नाम सिन्ध में अच्छी तरह कायम हो चुका था; जाम ऊनड़ के नाम के साथ, जो उस समय भी उस क्षेत्र का स्वामी था, १०५३ ई० में इन लोगों का सौराष्ट्र से सर्वप्रथम सम्पर्क होना विदित होता है; और ११६३ ई० में रायधन के समय में स्थान-त्याग, उपनिवेश-संस्थापन और क्रमशः कच्छ पर विजय-प्राप्ति होती है, जो १५३७ ई० में प्रथम राव खंगार के
प्रथम प्राक्रमण के समय चितौड़ की रक्षा करने में सहायता की पी। देखिए-राजस्थान
का इतिहास भाग १, पृ० २३१ । 'कनल सर हेनरी पॉटिजर का जनम १७८९ ई० में प्रायरलैण्ड में हुआ था। यह १९३६ -४० ई० तक सिन्ध में गवर्नर रहे और बाद में 'अफीम-युद्ध' (Opium War) में प्रसिद्ध प्राप्त करके हांगकांग में पहले ब्रिटिश गवर्नर पद पर नियुक्त हुए। तदनन्तर मद्रास में भी १९४७-५४ ई. तक गवर्नर रहे । इन्होंने अपने संस्मरण भी लिखे हैं।
-Webster's Biographical Dictionary; p. 12953 1959
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org