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________________ प्रकरण - २२ बारेचों के इतिहास का तियिक्रम [४५ की तरफ चली गई और जाबुलिस्तान में बस गई; दूसरी सिन्ध में गई और वहाँ साम्ब की राजधानी सामनगर की स्थापना हुई, जो सिकन्दर द्वारा सिन्धु नदी पार करने के समय तक भी मौजूद थो; यह पंतृक नाम साम्ब अथवा साम बाद में भी उस समय तक चलता रहा जब तक कि उन्होंने अपना धर्म-परिवर्तन करके मुसलमानों की राजनीतिक एवं नैतिक प्राधीनता स्वीकार न करली और जिनके इतिहास में वे 'सिन्ध-सुम्मा' वंश के कहलाए; उनका यह नाम भी तब तक प्रचलित रहा जब तक कि उन्हें सिन्ध से न निकाल दिया गया और नए अवटंक 'जाड़ेचा' ने अतीत पर पर्दा न डाल दिया। इस प्रकार हमें सिन्ध-सुम्मा-इतिहास के निम्न प्रधान-युगों का पता चलता है । पहला, साम्ब का सिन्ध में जमाव, ११०० से १२०० ई० पू०; दूसरा, इस जाति की सिकन्दर के समय अर्थात् ३२० ई० पू० तक यथावत् स्थिति। इस समय से चूड़चन्द तक अर्थात् १०४ ई. तक के नाम तो मिलते हैं, परन्तु तिथियों का पता नहीं चलता। उसके पुत्र साम-यदु के साथ ही प्राचीन नाम के पुनः दर्शन होते हैं और, कहते हैं कि, उसके वंशजों ने भी 'साम नगर के सुम्मा राजा' की विशिष्ट पदवी की रक्षा की। इन्हीं में से, सब नहीं तो, कुछ ने अपना धर्म बदल लिया था। यहां हम रुक जाते हैं। पॅरोप्लुस का कर्त्ता कहता है कि दूसरी शताब्दी में एक पार्थियन अथवा इण्डोसीथिक संघ ने निचले सिन्ध पर अधिकार कर लिया था, जिसके राजा ने 'मि नगर' (जो सामि नगर Sami nagar ही है, जिसका पाद्य अक्षर 'सा' लुप्त हो गया है) को अपनी राजधानी बनाया था। अब, सवाल अपने आप खड़ा होता है क्या उस नई जाति ने साम्ब के वंशजों को नष्ट कर दिया अथवा बाहर निकाल दिया अथवा यह एरिअन द्वारा उल्लिखित चूड़चन्द और वर्तमान जाड़ेचों की वह इण्डो-सीथिक जाति है जो उच्चतर एशिया में अपने द्वारा पालित धर्म और रहन-सहन की अपेक्षा अधिक निषेधात्मक धार्मिक रीति-रिवाजों के सम्पर्क में आकर इन लोगों में मिल गई थी और साथ ही इनके इतिहास को भी अपनी वंशावलियों के प्रामुख में सम्मिलित कर लिया था ? परम्परा से प्राप्त कथाओं में इस तथ्य को स्पष्ट गन्ध आतो है । इनमें से नगर के जाम राजाओं के विषय में एक कथा इस प्रकार प्रचलित है कि 'इनका पूर्वज जसोदर मोरानो (Jusodur Morani) मुलतान और पञ्जाब छोड़ कर सिन्ध आया था।' यदि सुम्मा लोग दूसरी शताब्दी में सिन्ध-विजय करने वाली यूची जाति के नहीं हैं तो उन्होंने उनको निकाल दिया होगा; और हम देखते हैं कि हिजरी सन् की पहली और विक्रम को पाठवीं शताब्दी में ऊपरी सिन्ध की गद्दी पर दाहिर' का • यह विचित्र तथ्य है कि बाहिर 'वेशपति' अथवा सिन्ध के राजा दाहिर ने इसलाम के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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