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प्रकरण - २३; कच्छ राज्य का गठन; भायाव
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लगभग है, यद्यपि छुट-भाई और एक-एक गांव के जागीरदार मिला कर कोई दो सौ होंगे । परन्तु, यहाँ कच्छ में भी अन्य व्यवस्थित राजपूत रियासतों की तरह, कुछ ऊंची पदवी के जागीरदार बने हुए हैं, जिनको औरों की अपेक्षा अधिक सम्मान और भूमि प्राप्त है; जैसे, मेवाड़ में 'सोलह',' आमेर में 'बारह और जोधपुर में 'पाठ'' बड़े जागीरदार हैं उसी प्रकार कच्छ में 'तेरह' मुख्य सरदार हैं, इनमें भी प्रमुख वे हैं जो खंगार से 'पहले कायम हुए' ठिकानेदारों के वंशज हैं, जिनकी वंशावली में ये अशुद्ध तत्व, जैसा कि पहले कह चुका हूँ, सर्व-प्रथम सरकार के रूप में विलीन हुए थे। पहले, हर एक सरदार अपने स्वयं के द्वारा अथवा किसी पूर्वज द्वारा संयोग से जीतो हुई भूमि में असीमित अधिकारों का उपभोग करता था; और, जब १५३७ ई० में खंगार राजा घोषित हो गया तो भी वे लोग स्वनिर्मित अधिकारों पर डटे रहे तथा राज्य के नेता को उतनी ही सेवा अथवा सत्कार देते रहे जितनी कि समाज की एकता को स्थिर रखने के लिए आवश्यक थी। ये कच्छ राज्य के पूरे आजाद सामन्त हैं, और क्योंकि वे यहाँ की शासन प्रणाली के मूलभूत आधार हैं तथा राजवंश की उन समस्त शाखाओं के प्रतीक हैं जिन्होंने खंगार से पूर्व और अनन्तर भूमि प्राप्त की थीइसलिए यहाँ के राजा को किसी भी अन्य रियासत के स्वामी की अपेक्षा कमसे-कम अधिकार प्राप्त हैं, और यह शक्ति-विभाजन राजा और सामन्तों में इतना सन्तुलित है कि यदि किसी भी पक्ष में आचरण सम्बन्धी गड़बड़ी पैदा हो तो गंभीर परिवर्तनों का अवसर उपस्थित हो सकता है। मुझे इस बात का पता नहीं लगा कि जब असंगठित जाड़ेचा सामन्तों ने खंगार को अपना राजा
' मेवाड़ के सोलह प्रमुख ठिकानों के लिए देखिए इसी पुस्तक के पृ० १२-१३ की टिप्पणी। २ प्रामेर की बारह कोटड़ी महाराज पृथ्वीराज के १६ पुत्रों में से ५ के निस्सन्तान मर जाने
और दो के राजा एवं जोगी बन जाने के कारण शेष १२ के नामों पर स्थापित हुई थीं । सामान्यतः इनके नाम इस प्रकार है-(१) नाथावत (ठि० चौमूं व सामोद), (२) रामसिंहोत (खोह, गुंणसी), (३) पच्याणोत (नायला, सामरया), (४) सुलतानोत (सूरोठ), (५) खंगारोत (साईवाड़, नरणा, डिग्गी), (६) बलभद्रोत (अचरोल), (७) प्रतापपोता (सांड-कोटड़ा), (८) चतुर्भुजोत (बगरू), (5) कल्याणोत (कालवाड़), (१०) सांईदासोत (बडोद), (११) सांगोत (सांगानेर) पोर (१२) रूपसिंहोत कुम्भाणी (बांसखोह) ।
विशेष विवरण के लिए देखें हनुमान शर्मा कृत 'नाथावतों का इतिहास' पृ. ६२-६५ ३ मारवाड़ के प्रमुख ठिकानों के नाम यों प्रसिद्ध है
रियां', रायपुर, खेरवो३, पाऊों ने प्रासोप । बगड़ी', जाणा, खींवसर८, आठों मिसल अनोप।
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