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________________ प्रकरण - २२; बंगार; भुज नगर की स्थापना [ v$ इस इतिहास में (प्रो 'ठो की पीढियों में सातवें) हमीर तक कोई उल्लेखनीय बात नहीं है, जिसको इस वंश की बड़ी शाखा वाले हालार के जाम ने तेहरा (Tehra ) ग्राम के पास मार दिया था; परन्तु इस वध का उद्देश्य सफल नहीं हुआ क्योंकि स्वयं हालार की पत्नी ने, जो चावड़ा कुल की थी और हमीर के शिशु की माता की बहिन [ मौसी ] थी, उनके रक्षण का दृढ़ निश्चय किया और उनको अपने भाई ककुल (Kuku चावड़ा के पास भेज दिया, जिसने इस कर्तव्य और विश्वास का निर्वाह इतनी सचाई से किया कि अपने स्वयं के पुत्र के वध को भी सहन कर लिया परन्तु उन लोगों के छुपने का स्थान जाम को नहीं बताया । इतिहास में आगे लिखा है कि उसी दिन से ककुल के सामन्तों को 'किसी तलवार के वार से न मारे जाने का' वरदान प्राप्त हो गया- सेवा के बदले में ऐसा वरदान प्राप्त होना सन्देहास्पद-सा ही लगता है ! तरुण राजकुमार उस गुप्तवास से पूर्व की ओर गए और मानिक मेर से मिले जो भविष्य देखने में सिद्धहस्त था । सभी राज्य संस्थापकों के समान सब से बड़े भाई खंगार के पैर में राज्य - चिह्न था, जिसको उस ज्योतिषी ने जब वे एक मन्दिर में सो रहे थे तब देख लिया और उसके भाग्योदय की भविष्यवाणी करते हुए उन लोगों को बेधड़क अहमदाबाद जाने के लिए कहा। नई श्राशानों के साथ जब वे निकल पड़े तो उनको मार्ग में एक काला घोड़ा मिला जो एक बड़ा अच्छा शकुन था इसलिए वे श्रागे बढ़ते चले गए । राजा आखेट को निकला था और खंगार ने 'हाके" में शामिल होकर एक बड़े सिंह का शिकार किया। इस अवसर पर अपने परिचय एवं कहानी के परिणाम में वह राजा का प्रीतिपात्र बन गया और उसने कच्छ तथा मोरबी की जागीर 'राव' पदवी सहित प्राप्त की । राजकीय सेनाओं की सहायता से जाम रावल को अनधिकृत क्षेत्र से निकाल दिया गया और उसे हालार में जाकर शरण लेनी पड़ी। इस प्रकार राव खंगार हमीरानी (हमीर के पुत्र) ने संवत् १५९३ (१५३७ ई०) में अपना अधिकार प्राप्त किया और संवत् १६०५ ( १५४९ ई० ) में मगसिर महीने की पञ्चमी तिथि को भुजनगर की स्थापना की । मानिक-मेर को भी भुलाया नहीं गया; उसको और उसके वंशजों को वीर ( आधुनिक अंजार ) नामक नगर और परगना दिया गया; परन्तु आजकल अंजार के मालिक अंग्रेज़ हैं । यहाँ यह भी उल्लेखनीय है कि हमीर ने अपने वध I " शिकार को हल्ला मचा कर ऐसे स्थान तक ले आना जहाँ आखेटक राजा आसानी से निशाना लगा सके । ऐसे अवसरों पर राजानों के साथ बहुत-से प्रादमी जंगल में जाते हैं और हल्ला मचाते हैं। राजस्थानी में 'हाका' का अर्थ हल्ला या शोर होता है । इसी आधार पर पूरे अभियान को 'हाका' कहा जाने लगा । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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